Book Title: Anusandhan 2020 02 SrNo 79
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 55
________________ अनुसन्धान-७९ सींगणि गुण गाजीनें रहै, सरमांहैं सरोवर वहिं झब झब वीज जसी झबकार, गयवर करं करीं वींझइ तरु आरि(र) ॥२७५॥ अजितसेन मांड्यो दंदोल, प्रगट्यो राय श्रीपाल कल्लोल सेवक रह्या रण सवे करी, सातसें राय राणा परवरी ॥२७६॥ वढण वढे ते नवि छंडई पाय, वयर न जुनुं कहिइं थाय पाडी बांध्यो देइ फाल, अमर भणै जय जय श्रीपाल ॥२७७।। अजितसेन भागउ भडवाय, चंपा गढि जई बइठउ राय बापतणुं वलि वाल्युं राज, नवपद ध्यानई सीधुं काज ॥२७८॥ अजितसेन राजा तिहां बद्ध, तिणें वैरागै संयम लिध्ध खिमा खडगि हणीओ क्रोध, जयजय अजितसेन महायोध ॥२७९।। चंपापुर वरिराज बइठ्ठ, धन धन ते नर जेणें दीठ ततखीण ऋषीने उपनुं ज्ञान, वंदन जाई श्रीपाल प्रधान ॥२८०॥ गुरु धर्म कहै तत्त्वविचार, हरख्यां राय राणी अपार फल्या मनोरथ अम मन तणा, तुम वांवें पाप नाठां भवतणां ॥२८१।। राय पूछ पूरवभव विरतांत, गुरु भणै [राजा] श्रीकांत श्रीमती रांणी गुणवंत, आहेडिं चाल्यो राय महंत ॥२८२॥ धीग धीग वारै रांणी तास, तो हि न छंडई पाप अभ्यास एहवें सांहमो आव्यो साध, मुनीनें कहै कुष्टी व्याध ॥२८३।। जलमांहिं नांखी कहीओ डुंब, रांणी वारें धीग तूं सुंब तिणि वारं लागो प्रतिबोध, ऋषी वांदिने मांगि सोध ॥२८४।। रीषी कहै तुं अधरमी आप, तुझ मुख दी, लागें पाप तो है सिद्धचक्र आराधे, मन निश्चल करी परभव साधि ॥२८५।। चैत्री आठिम थको तप मांडइं, इम पातिक सवि दूरई छांडिं इम कही ऋषीश्वर रह्यो, राइं बोल हृदयमां ग्रह्यो ॥२८६।। रांणी सरिसो तुं तप तपें, आठ कर्म ते हेलां खपि उजमणों ते को विस्तार, आठ सहीरसुं रांणी सार ॥२८७।।

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