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जान्युआरी - २०२०
श्री सिद्धचक्ररास अथवा श्रीपालरास
- सा. दीप्तिप्रज्ञाश्री
श्री सिद्धचक्र माहात्म्य उपर श्रीश्रीपाल रास अनेक रचाया छे जेमांनी अमुक रचनाओ प्रगट छ । प्रस्तुत श्रीश्रीपालरासनी अप्रगट कृतिनी हस्तप्रत(झेरोक्स) पू. आ.श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी म. पासेथी मळी छे ।
___ आ श्रीपालरासना अन्ते रासना कर्ता, तेनी गुरुपरम्परा, गच्छ तेमज रासनी रचना संवत प्राप्त थाय छे ते आ प्रमाणे - नायल गच्छना श्री गुणसमुद्रसूरिना शिष्य श्रीगुणदेवसूरिना शिष्य श्रीगुणरत्नसूरिए वि.सं. १५३१ ना मागशर सुद-रना गुरुवारे आ श्रीसिद्धचक्ररासनी रचना करी छ ।
'जैन गूर्जर कविओ'मां आ कृति गुणदेवसूरिना शिष्य 'ज्ञानसागर उवज्झाय' कृत नोंधायेली छे ।
कर्ता अंगे ज विसंवाद जोवा मळतां आ रासनी बीजी प्रत मेळववा प्रयत्न करतां 'श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र - आ. श्रीकैलाससागरसूरि गुरुमन्दिर - कोबा'ना भण्डारमाथी आ रासनी हस्तप्रत झेरोक्स तेओ पासेथी मली । तेओए प्रति झेरोक्स आपी ते बदल आभार । ए प्रति पर सा. क. ५७७७८ नंबर छ। जेमांअन्ते 'ज्ञानसागर उवज्झाय' कृत आ रचनाने समर्थन मळे छ । 'ज्ञानसागर उवज्झाय' गुणरत्नसूरिना गुरुभाई हता एवं जाणवा मळे छ ।
श्रीशीलचन्द्रसूरि म. पासेथी मळेली प्रतनां पानां १५ छे एमां १५मा पत्रमां एकज बाजु लखाण छे । सं. १६९९ मां - एटले १७मी सदीना अन्ते - आसो सुद-७ ना राजद्रंगमां लखायेली ए प्रत छे. एमां गाथा - २६९ छे ।
कोबानी प्रतमा २० पत्र छे. १९ पूरा अने २०मा पत्रनी एक बाजु अडधुं लखेल छे । जे सं. १७६९-एटले १८मी सदीना उत्तरार्धमां-चैत्र-सुद १३ना मंगळवारे लखायेली छे । एमां गाथा ३१९ छ । बन्ने प्रतमां मुखडं अने अन्त समान छ । कोबानी प्रतमां भाषा छन्दमां ४ चरणनी गाथा छे अने वाचनामां-८ चरणनी गाथा छ ।
शी. प्रतनी वाचना मान्य राखी कोबानी प्रतना पाठभेदने नीचे नोंध्या छ। मूळ वाचना छे तेमां प्रयोग 'अउ-अइ' अन्तवाळा छे । दा.त. - 'कहइं, सांभलउ, .