Book Title: Anusandhan 2003 07 SrNo 25
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-२५ पछी आरंभाय छे कक्काना अक्षरोना क्रमे श्लोकरचना. अ थी ह सुधीना (अनुस्वार-विसर्ग समेत) १६ स्वरो तथा क वगेरे ३३ व्यञ्जनो माटे ६३-१२५ सुधीना श्लोको छे, जे औपदेशिक अने बोधकतानी दृष्टिए बहु मजाना छे. छेवटे १२९ मा पद्यमां कक्काशिक्षणमां शीखवातुं अन्तिम वाक्य 'मङ्गलं महाश्रीः' छे, अने साथे ग्रन्थकारनो नामनिर्देश पण छे.
आ रचनानी हाथपोथी अमदावादना संवेगी उपाश्रयना ग्रन्थभण्डारनी छे, जेनी जेरोक्स नकल मुनि श्रीधुरन्धरविजयजीए मेळवी हती, तेना आधारे आ सम्पादन करेल छे. प्रत ८ पत्नी छे, अने शुद्धप्राय छे.
श्री अक्षयचन्द्रकृत मातृकाप्रकरण अनुसन्धान-१२मां मुद्रण पाम्युं छे, तेनुं स्मरण पण आ क्षणे थाय छे.
-शी. (मद्रास) -xसिद्धमातृकाप्रकरणम् ॥
अहँ ॥ अहं विभुर्विश्वशिरोवतंस - प्रायान्तरज्योतिरनाद्यनन्तः ।
सिद्धाक्षरब्रह्मवितानगर्भो विमुक्तचित्तैरपि चिन्तनीयः ॥१॥ अहं समग्रवर्णानां धुरि चान्ते च लीनवान् । ज्ञातो नतैः परब्रह्मनिष्णातैर्नरशेखरः ॥२॥ अहं मध्यस्थतालीनसकलाक्षरनायकः ।
तमोजैकशिरोरत्न-माम्नातो बालकैरपि ॥३॥ अहं विधाता परमः पुमानहं महेश्वरोऽहं गुणसम्पदा सदा । त्रैगुण्यमुक्तः क्रमतो जिनोऽप्यहं चराचरेऽहं खलु नामधामभिः ॥४॥ मित्येकं ध्येयमध्यात्मिनां यो मायाबीजे यत्प्रतिच्छायमम्भः । सोऽहं हंसः सात्त्विका लिप्सवो मे न हीमन्तः श्वा(स्वा)त्महानिः क्व तेषाम् ?।।५।। सोऽहं हंसः कश्चिदाकाशदेवो मायास्थल्यां यन्मरीचिप्रपञ्चः । अग्रे तन्वनुत्तरङ्गं भवाब्धि स्वान्तभ्रान्ति हन्त दत्ते पशूनाम् ॥६॥
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