Book Title: Anusandhan 2003 07 SrNo 25
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 106
________________ September-2003 101 खरतरगच्छ के जिनकुशलसूरिजी के पौत्र शिष्य और गौतमरास के प्रणेता विनयप्रभोपाध्याय के शिष्य उपाध्याय क्षेमकीर्ति की परम्परा में आठवें नं. पर वाचक हेमनन्दनगणि हुए । उन्हीं के शिष्य सहजकीर्ति थे । ये प्रकाण्ड विद्वान् और श्रेष्ठ कवि थे । लोद्रवपुर पार्श्वनाथ मन्दिर में सुरक्षित ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण 'शतदल पद्मयन्त्रमय श्री पार्श्वस्तव' आपकी अद्वितीय कृति हैं । यह कृति मेरे द्वारा सम्पादित “अरजिनस्तवः" सहस्रदलकमलगर्भितचित्रकाव्य के परिशिष्ट में सन् १९५३ में प्रकाशित हो चुकी है । सेठ थाहरुशाह भणसाली कारित लौद्रवा पार्श्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा विक्रम सम्वत् १६७५ में आचार्य श्रीजिनराजसूरि के कर-कमलों से हुई है । इस प्रतिष्ठा में सहजकीर्ति भी उपस्थित थे । आपके द्वारा निर्मित अन्य साहित्यिक की सूची इस प्रकार हे - १. कल्पसूत्र टीका कल्पमंजरी शब्दार्णवव्याकरण (ऋजुप्राज्ञव्याकरण) १६८५ नामकोष सारस्वतवृत्ति एकादिशतपर्यन्तशब्दसाधनिका प्रवचनसारोद्धार बालाबोध १६९१ प्रतिक्रमण बालाबोध दसवैकालिकटब्बा १७११ महावीरस्तुति वृत्ति १६८६ गौतमकुलकवृत्ति थिरावलि १२. अनेकशास्त्रसमुच्चय १३. रायप्रसेणी उद्धार १४. देवराजवच्छराज चौपाई १६७२ खीमझर १५. शत्रुजयमहात्म्यरास १६८४ आसनीकोट १६. सागरसेठ चौपाई १६७५ बीकानेर ॐ 3 o ; voi १०. ११. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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