________________
September-2003
77
बेनी नवमे वरसे प्रगट्या के पूर्व पुन्यावलि रे लोल । बेनी लावण्य तेहने देखी; के हर्ष हिये घणो रे लोल ॥१२॥
इति गुंहलि समाप्त ॥ संवत् १९६५ रा माह सुद० १ श्री मुनिसुव्रतजीन प्रसादात् गामे - मांडवाडा ॥
श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥
___C/o. जितेन्द्र कापडिया __ १२-बी, सत्तर तालुका सोसायटी, अजन्ता प्रिन्टरी, नवजीवन, अमदावाद-१४.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org