Book Title: Anusandhan 2003 07 SrNo 25
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 80
________________ श्रीमुनिचन्द्रसूरिगुरुगुणगहुँली ॥ सं. आ. प्रद्युम्नसूरि .. आ गहुंली रचनानी दृष्टिए साव सादी छे पण तेमां गूंथेली घटनानी दृष्टिए ते नोंधपात्र छे. श्रीपूज्यनी प्राणवान परंपरामां आ आ.श्री मुनिचन्द्रसूरिजी महाराजनुं नाम छेल्लं मळे छे. तेमना जीवननी माहिती बाबत जिज्ञासा रहेती हती. ते संयोगोमां आ नानी रचना थोडो प्रकाश पाथरे छे. रचना पाटणमां तेओश्री पधार्या ते प्रसंगे थई छे. व्याख्यानमां गहुंली गावानी प्रणालिका श्रीपूज्योमा हती तेवू जणाय छे. आ.श्री मुनिचन्द्रसूरिमहाराजने सूरिपद नानी वयमां प्राप्त थयुं होय तेवू जणाय छे. वि.सं. १९५९ अखात्रीज वृषभलग्नमां दीक्षा जणावे छे. खंभातथी पूना जवानी वात छे. महेन्द्रविजय गणी ए नाम आचार्यपद पूर्वे हशे? आ बधी विगतो तपासवा चकासवा माटेनां साधनो शोधवानां बाकी छे. छतां आ रचनामांथी केटलीक विगतो तारवी शकाय छे. जन्म स्थान - राजस्थान-चांपासणी, पिता नाम - भीखाजी, माता नाम - धापुबेन. वि.सं. १९५९मां दीक्षानी साथे सिंह पदनो उल्लेख छे. सिंहपद एटले शुं अभिप्रेत छे, ते जाणवू बाकी छे. नवमा वर्षनो उल्लेख दीक्षा संबन्धमां होवो जोइए । कर्ताना नामनी अटकळमां छेल्ली कडीमां आवतां लावण्य अने हर्ष ए बे शब्द द्वारा लावण्य ओ गुरुर्नु नाम अने हर्ष ए शिष्यनुं नाम होइ शके. आ एक ऊभुं चीरीयुं छे. कोबास्थित आ.श्री कैलाससागरसूरिज्ञानमन्दिरना व्यवस्थापकना सौजन्यथी प्राप्त थयुं छे. लेखन संवत् - १९६५ छे, एटले रचना पण ते दरम्याननी गणी शकाय. क्यारेक आवी सामग्रीमांथी इतिहासनी खूटती एकाद कडी मळी रहे तेटलुं आनुं मूल्य मानवू जोइए. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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