Book Title: Anusandhan 2003 07 SrNo 25
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 78
________________ September-2003 73 ॥३१।। ॥३२।। ॥३३॥ ॥३४॥ ॥३५॥ ॥३६॥ सेतुंजादिक तीर्थ जेह, वकसइ सहगुरुकुं तेह । जीजीउ दंड दोर जगाति, अकबरसाही कइ नहीं वात जोर जूलम न कीजइ जाकइ, हुउ ए अधिक इसा कइ भोगीजन करु बहु भोग, आतम साधउ जोग । देस नगर पुर गाम, सुखी जिहां जिहां अकबर नाम तेह सहगुरुनउ उपदेस, समुअरइसुं सदा वंछेसि । चउथउ आरु परतख्य दीसइ, पूजीजइ जिन चउवीसइ उछव होवइ नित झाझा, जिनसासनि बहुत दिवाजा . श्रीविजयसेनसूरिंद, चीर प्रतिपउ महामुणिंद । जस गुणकु न लहुं पार, सोहम जंबू अवतार सकलपंडित सिरताज, कल्याणकुशल गुरुराज । न्यानी गुणवंत मुनीश, श्रीमेहमुनींदकु सीस दूहा ॥ साह लटकण सुत गुणनिलु, लीलादे जसमाय । कल्याणकुशल गुरु भेटतां, दारीद दुरि जाय चालि || अहनिसि जपतां गुरु नाम, सीझइ मनवंछित काम । कहइ दयाकुशल तस सीस, सुप्रसन सहगुरु निसदीस इति श्री लाभोदयरास समाप्तं ॥ ग्रंथाग्रं २५१ ॥ ॥३७॥ ॥३८॥ ॥३९॥ -x Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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