Book Title: Anusandhan 2003 07 SrNo 25
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ 72 अनुसंधान-२५ ॥२४॥ चालि ॥ गुरु कह्या हमारा कीजइ, उपाध्याय पदवी दीजइ । साही अकबर दिउ खताब, मनि जाणी बहुत सबाब ॥२०॥ मुहुरत भलु दिन लीजइ, उपाध्याय पदवी दीजइ । महोछु करइ सेष सुजाण, द्रव्य खरचइ बहुत मंडाण ॥२१॥ दुहा ॥ चूआ चंदन छांटणा, श्रीफल उ तंबोल । जाचिक अजाची कीया, आणी सेषि उलोल ॥२२॥ चालि ॥ मनि आणी अति उलोल, सेष करइ सबल रंगरोल । उपाध्याय पदवी द्यावी, जगमई जसपडहु वजावी ॥२३॥ अकबर सहगुरुकुं बकसइ, ते सुणतां हीयडु विकसयइ । नगरथठउ सिंध कच्छ, पांणी बहुला जिहां मच्छ जिहां हुता बहुत सिहार, ध्यन ध्यन सहगुरु उपगार । च्यार मास को जाल न घालइ, वसेषिइं वली वरसालइ ॥२५।। गाय मरती मनय सहु कीधी, दिन बार अमारि वर दीधी ॥२६॥ दुहा ॥ जइ गुरु सांचा निसप्रही, तु मागई अभयदांन । साही पासि करावीया, एह अडीग्ग फूरमान ॥२७॥ चालि || इय बोलइ साही सुजाण, - गुरु - प्रमाण । जेसंग अकबर साही, दुजेउं अविचल पतिसाही ॥२८॥ जिहां मेर जलही सूरचंद, तिहां प्रतिपु एह मुणिंद । साधु साधवी श्रावक श्रावी, उदयवंत सुगुरु पद पावी ॥२९॥ करतव्य जे अकबरि कीधां, सहु जाणे लोकप्रसिद्धां । जगतगुरु दीधुं नाम, छ मास अमारि फरमान ॥३०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116