Book Title: Anusandhan 2003 07 SrNo 25
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 88
________________ September-2003 83 मानससरने हंसा, जिम चाहें एक मने री. सीता हृदें जिम राम, धनि मनि जेम धने री. समदरशि मनि शांतिरसस्युं जिम नेह , री. धरमी मन जिम धर्म, जननी जिम वछे री. नंदनवनने इंद, जिम चाहें चित्त खरें री. वली भूख्या- मन्न, लालचु जिम घेबरे री. कामिनी मनि जिम कंत, मुनि मनि जिम दया री. नयवादिने मन्त्रि, वसिया जेम नया री. ६ तिम मुझ मन जिनराज, सुमतिनाथ वश्या री. वाचक मुगति सौभाग, कहें शिवसुख उल्लस्यां री. ७ m इति श्रीसुमतिनाथस्तवनं ॥ ५ ॥ २ पा० पद्मप्रभ जिन सांभलोजी, सेवक विनती एक. माहरा मनमां तुं वस्योजी, विद्यामां जिम विवेक पारंगत प्रभुजी धरिइ धर्मनो राग. आंकणी. कोईक सुदिन सुमुहूरतीजी, सज्जन चित्त चढ्या जेम. उतार्या पिण ते न उतरेजी, चित्र गज महावत जेम. ते माणस किम वीसरेजी, जेहस्युं घणो स्नेह. रातिदिवस अति सांभरेजी, जिम बप्पीया मेह. प्रीति जड जडी जे सद्मनेंजी, टंकण नेहस्युं सार. ते जड किमें नहीं नीसरेजी, जो मिले लक्ष लोहार. अचल अभंगई माहरेजी, तुंमस्युं अविहड राग. सुरगवी घृत जे पामिउंजी, तेजस्युं तस नही लाग. कोयल काली पिण अति भलीजी, हृदये जास विवेक. अंब विना सा अन्यस्युंजी, बोलइ बोलत एक ३ पा० ४ पा० ५ पा० ک یه ६ पा० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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