Book Title: Anusandhan 2003 07 SrNo 25
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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September-2003
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राजाओ पण असंख्य थई गया होवाथी क्यांक नाम-पाठ व. मां परावृत्ति थई जाय तो विद्वानोए व्यामोह न करवो एम जणाव्युं छे.
आ प्रतिनुं लेखन सं. १९५०ना बीजा आषाढ मासना कृष्णपक्षनी सातमे-गुरुवारे अजमेर-दुर्गमां मुनि मोहनविजयजीए करेल छे तेवू प्रतिनी प्रान्ते लखेल पुष्पिकाथी जणाय छे.
प्रति उदयपुरना हाथीपोळ-सराय भंडारनी छे. तेमां कुल पत्रो-३ आखा तेमज एक अडधुं-एम चार छे. अक्षरो सुन्दर तथा स्वच्छ छे. बेत्रण स्थळे रहेली नानकडी त्रुटिने बाद करतां लखाण शुद्ध छे. आ प्रतिनी जेरोक्स नकल पू.मुनि श्रीधुरन्धरविजयजी म. द्वारा सांपडेल छे.
॥ अथ श्रीराणभूमीशवंशप्रकाशः ॥ ॥ अर्हम् ॥
जयति विजयलक्ष्मीवासवेस्मा(वेश्मा)भिरामः प्रथितविपुलकीर्तिस्तेजसांराशिरूपः । जलधिरिव विशालश्चारुभूपालरत्नप्रभवभुवनसेव्यो राणभूमीशवंशः ॥१॥ इह महति महीयानन्वयेऽभूत् स भूमान् विदितसकलविद्यो बप्पनामाऽनवद्यः । । । अलभत जगदीशादेकलिङ्गाद् वरं यः प्रतिदिनमतिभक्त्या शुद्धसाम्राज्यसिद्धेः ॥२॥
तदनु दनुजहर्ता भूमिभर्ता गुहोऽभूद् १ गुहिल इति नरेशो २ जाग्रदुग्रप्रभावः ॥ अजनि जनितपुण्यः पुण्यनैपुण्यशाली तदनु बहुमहोमिर्भोजभूपो३ऽशुमाली ॥३॥ विशदसुकृतशीलः शीलदेवो मनस्वी ४ तदनु मनुजराजो राजराजोपमोऽभूत् ।
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