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अनुसंधान-२५ से लेकर ३१ अक्षर तक २४ छन्दों का प्रयोग हुआ है । प्रत्येक पद्य में प्रत्येक तीर्थंकर का नाम भी अंकित है और छन्द का नाम भी अंकित है, यह कृति की प्रमुख विशेषता है । २५वां प्रशस्ति पद्य स्रग्धरा छन्द में निर्मित है। भक्तिपूर्ण रचना होते हुए भी सालंकारिक है । बीकानेर के बड़े ज्ञानभण्डार में संग्रहित १५वीं की शताब्दी की लिखित प्राचीन प्रतिसे इसकी प्रतिलिपि की गई है ।
-xश्रीचतुर्विंशतिजिनस्तवनम् ।
(प्रवर्द्धमानाक्षरविभिन्नजातिव्यक्तिछन्दोविशेषरचितम्) (१) युगादौ जगदुद्धर्तुं,
यो युग्मविपुलावनौ । दिदेश धर्ममोक्षौ तं, स्तौमि श्रीनाभिनन्दनम् ॥१॥ युग्मविपुला ।। इन्द्रियगणैरविजितं, योऽर्हति जिनेन्द्रमजितम् । सङ्गतनितान्तमुदयं,
सोवन्ति महान्तमुदयम् ॥२॥ उदयम् ॥ (३) चन्दनकर्पूरागुरुशाला,
केतकजाती चम्पकमाला । नन्दतिवर्या तेऽङ्गसपर्या, सम्भवनेतः कस्य न चेतः ॥३॥ चम्पकमाला ॥ उपेन्द्रवज्रायुधवामदेवादयोजिता येन नृदेवदेवाः ।। स्मृतेऽपि यन्नामनि सोपि कामो, मृयेत नन्द्यादभिनन्दनोऽयम् ॥४॥ उपेन्द्रवज्रा ॥ द्रुतविलम्बितगीतिरसो लसच्चरणसञ्चरणातिमनोहरम् ।
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