Book Title: Anekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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१२ वर्ष ४० कि० १
बम्बई सं० गावांक
५-४
५-६
५- २८ (मूल)
५-३०
५-३५
५- ६१ (मूल)
""
"
५-७०
५-७५
५-११३
५- ११४
५- ११५
५- १२१
( वृत्ति)
५-१२७ ५-१६५
५-१७१
५- १७६ (मूल)
27
५-१०१
"
( वृत्ति)
५-१८२
५-१८४
५-२१०
५- २१६ (मूल)
ज्ञान पी० सं०
१६६
१६६
17
१८८
१६०
१९६
२१६
२१७
२२२
२२८
२५८
"
11
२५६
२६६
01
२६७
२७२
२६३
२६६
२६६
37
३०२
〃
91
पृ०
३०३
३२१
३२४
अनेकान्त
अशुद्ध पाठ
सर्वचानुपवर्तन
ज्ञानरूपमुपचारो
यत्प्रधानं
संवग्गीण
( भव्व) भव्वा निर्वाण
पुरस्कृता: (अभव्या-) अभव्यास्तद्विपरीता पुनररूपिणोजीयः
वागणुवादार
तुच्छा णित्तिण गे० यजुर्वेदार्थर्वणादयः
अमुख्यं प्रत्यक्षेन्द्रिय
सर्वासु सध्यादावन्ते नापि (?) (दो
तथैव (व) ह्रस्व
पत्ये (ज्ञा०पी० 'पहत्थे') मध्यान्हादरा (ज्ञान पी० टिप्पण मे शुद्ध है) संहृत्यावसयो दूरतो
स (श) तन
स्थानं वानुज्ञाप्य सभावनं
श्रुतं पठनयत्नं
पछिस्स साधण
(जा० पी० 'साहूणं')
करकुंडलेना ० अहीलं अपरिभवचन
कृष्णादिक्रिया (दि) रहितं
सम्यग्विराधना
उपकारे
वेदास्त्रयः । रागाहास्यादयः जहायाणं
१. बलोवीरियं थामो इदि एयट्ठो । धवला पु०८, पृ० ८६
उसके स्थान में सम्भव शुद्ध पाठ
सर्वयानुप्रवर्तन
ज्ञानरूपत्वमुपचारो
यत् चदानं सव्वंगीणं (गो० जी० ११५ )
भव्या भव्वा भव्या निर्वाणपुरस्कृताः अभव्यातद्विपरीता
पुनररूपिणो जीवा
वागणुवागादि (वृत्ति में शुद्ध है) तुच्छाणितापि ण गे० यजुर्वेदपर्ववेदादयः
अमुख्यं प्रत्यक्षमिन्द्रिय सर्वासु संध्यास्वादावन्ते नापितेर्देवदत्तो राव ह्रस्व
पहलट्टे (गो० जी० २२३)
मध्याह्लादारात् सत्यावसयाद्रो
शातन
स्थानं नानुज्ञाप्य स-भावनं
श्रुतपठने यत्नः
परिषदस्सपावर्ण
करकुड्मलेना०
अहीलणं अपरिभवदप कृष्यादिक्रियारहितं सम्यक्त्वविराधना
उपचारे
वेदास्त्रयः रागाः । हास्यादयः जहाथामं (पु०६, सूत्र ४१,
१०८६)

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