Book Title: Anekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 94
________________ १८, बर्ष ४०, कि०३ बह प्रयत्न किये । बह विरक्त हो गयी। श्रुतकीति विद्या से स्वर्ग गया और स्वर्ग से चयर चक्रवर्ती अचल का भेजकर प्रथम तो उसे अपने निकटवर्ती वन में लाया अभिराम नामक पुत्र हुआ। अनन्तर श्रावक के व्रत धारण अनन्तर विद्या के द्वारा उसे कैलाश पर्वत पर भिजवाया। करते हए देह त्याग कर ब्रह्मोत्तर स्वर्ग गया। इधर पूर्वयहाँ प्रभावती की देवी पपावती से भेंट हुई। पपावती ने। भव सम्बन्धी इसका पिता धनद वैश्य विभिन्न योनियों में कुसुमाञ्जलि व्रत की विधि एवं फल का निरूपण करते प्रमण करने के वाद पोदनपुर नगर में अग्निमुख ब्राह्मण हए यह व्रत प्रभावती को ग्रहण करने के लिए प्रेरित का मदुमति नामक पुत्र हुआ। किया, अतः व्रत धारण करते हुए मुनि त्रिभुवनचन्द से अपनी आयु तीन दिन मात्र को शेष ज्ञात कर इसने महा- मृदुमति वेश्या में आसक्त होकर अपना सम्पूर्ण धन तप भी धारण कर लिया। श्रुतकीर्ति ने विद्या भेजकर का नाश कर देता है । धन के अभाव में दुखी होकर वह इसका तप भंग करना चाहा किन्तु विद्या के अनेक उपसर्ग चोरी करने लगता है। एक दिन वह राजमहल में चोरी करने पर भी उसे योग से विचलित न कर सकी। प्रभा- करने गया । रात्रि मे वह राजा की रानी के साथ हो रही बती संन्यास पूर्वक देह त्याग अच्युत स्वर्ग में पपनाथ बातों को सुनता है। राजा रानी से कह रहा था कि रानी नामक देव हुई और स्वर्ग से चयकर रत्नशेखर । प्रभावती प्रातः होते ही मैं तप ग्रहण करूंगा, रानी कहती है कि मैं का पिता धनवाहन और माता मदनमञ्जूषा हुयी है। भी दीक्षिस हो जाऊँगी। संसार में कुछ भी तो सार नहीं सप्तम परिच्छेद है। मृदुमति राजा रानी के विचारो से प्रभावित होकर प्रातः महाव्रत धारण करने का निश्चय कर लेता है तथा राजा देवसेन से मुनि अमरसेन कहते हैं-हे राजन! प्रातः होते ही तीनों दीक्षित हो गये । त्रिलोक मण्डल हाथी की प्रसिद्धि और भवन की सिद्धि में कुसुमाञ्जलि पूजा ही एक हेतु है। केवली देशभूषण ने मदुमति विहार करता हुआ एक ऐसे नगर पहुंचा बताया था कि कई भवपूर्व भरत और त्रिलोकमण्डन हाथी जहाँ कोई गुणनिधि नामक चारण मुनि विराजमान थे। सर्योदय और चन्द्रोदय नामक सहोदर थे। विशुद्ध तप को उनके मासोपवासों से नगर के लोग अधिक प्रभावित थे । स्याग दोनों राज्य संचालन में रत हुए। आर्तध्यान से मर गुणनिधि ने योग पूर्ण कर जैसे ही गजपुर के लिए विहार कर स्त्रीपर्याय में भ्रमण करने के बाद चन्द्रोदय गजपुर किया कि मदमति मुनि उस नगर में आये । चर्या के लिए नगर में कुलकर नाम से उत्पन्न हुआ और सूर्योदय गजपुर उनके निकलते ही श्रावकों ने बार बार प्रश्न किया कि नगर के मंत्री विश्रतास का श्रुति नामक पुत्र । दोनों मर. क्या आप वही मासोपवासी मुनि हैं? इस प्रश्न का मुनि कर तियंच योनि में भ्रमण करने के बाद राजगही नगरी मदुमति ने कोई उत्तर नहीं दिया। वे मौन रहे। उन्होने में एक ब्राह्मण के पुत्र हुए। बड़े का नाम विनोद और यथार्थ स्थिति प्रकट नहीं की। इस कपट व्यवहार के छोटे का नाम रमण रखा गया। विनोद और रमण मर कारण मदुमति मुनि तप के प्रभाव से ब्रह्म स्वर्ग मे उत्पन्न ए। राजा स्वम्भूति इन दोनों हिरणो का तो हुए किन्तु वहां से चयकर त्रिलोकमण्डन हाथी हुए हैं शिकारी के पास से ले जाकर जिन मन्दिर के समीप बांध तथा अभिराम का जीव स्वर्ग से चयकर भरत हुआ है। देता है। हिरण भाव पूर्वक जिनेन्द्र की पूजा सुनते हैं। पूजा के भावों के साथ मरकर रमण का जीव हिरण इस प्रकार अपना भवान्तर सुनकर भरत ने दीक्षा स्वर्ग में देव हुआ और विनोद का जीव तिर्यञ्च योनि में ग्रहण की, कैकेयी ने तप धारण किया, राम ने अणुव्रत भ्रमण करने के बाद धनद नामक वैश्य हुआ। रमण का धारण कर त्रिलोकमण्डन को भी धारण कराए। इसी जीव स्वर्ग से चयकर इसी वैश्य का भूषण नामक पुत्र कुसुमाञ्जलि पूजा के फलस्वरूप ग्वाल करकण्ड नामक आ। वन में सर्प के काटने से मरकर भूषण माहेन्द्र स्वर्ग राजा हुआ। में देव होने के बाद भोगभूमि में उत्पन्न हुआ। भोगभूमि (शेष पृ० १३ पर)

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