Book Title: Anekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 124
________________ वस्त्रधारी भट्टारक कब से हुए श्री रतनलाल कटारिया 'भट्टारक' शब्द पूज्यार्थ में प्रयुक्त होता है (राजा जिनमें प्रभाचन्द्र का हाल इस प्रकार दिया है :--"श्री भट्टारको देव:-प्रमर कोष) सस्कृत कोषों मे राजा, भट्टा- प्रभाचन्द्र बहुत से शिष्यों के साथ पाटण खंभात धारा देवरक और देव ये ३ शब्द पूज्य अर्थ में भी बताए हैं यथा- गिरि आदि में विहार करते हुए मिथ्यामतों का खडन आ० श्री सूर्यसायर जी महाराज, भट्टाकलक, समन्तभद्र करते हुए योगिनीपुर (दिल्ली) मे आये। वहां भव्य जीवों देव । पहिले सभी नग्न दिगम्बर साधु इसी अर्थ में भट्टारक ने उन्हें महोत्सव के साथ रत्नकीति के पट्र पर बैठाया। भी कहलाते थे किन्तु वनवास छोड़कर जब ८-१०वी वहां उन्होंने विद्या से वादियो के मत काभजन करके महमद शताब्दी से चैत्यवास-नगरवास प्रारम्भ हुआ और दि० शाह के मन को रजायमान किया।" साधू भी मठाधीश हुए तो यह पूज्य शब्द भी बदनाम यहां महमद शाह को खुश करने की बात लिखी है हो गया। भ्रष्टाचार, अनाचार, शिथिलाचार से ऐसे ही इससे उस किंवदन्ती का संकेत मिलता है जिसमें कहा अनेक उच्च शब्द हीन बन गये है। जैसे-"पाखडी" जाता है कि-बादशाह ने भट्टारक से यह विनती की थी (पापं खण्ड यति, पाखण्डाः सर्वलिगिनः) पाप का खण्डन कि हमारी बेगमे भी आपका दर्शन करने को बड़ी उत्सुक करने वाले सब संप्रदाय के साधुओ को कहा जाता था हैं। अत: आप उन्हे दर्शन देने को वस्त्र धारण कर ले । किन्तु बाद में यह मायाधी धूर्त अर्थ मे हो गया। इसी इस प्रार्थना पर भट्टारक जी ने वस्त्र धारण प्रारम्भ किया प्रकार के कुछ शब्द निम्नांकित हैं (अति परिचय से भी था। अवज्ञा (व्यग) हो जाता है) १. बुद्ध-बुद्ध। २. नग्न, वस्त्र धारण की प्रथा इन प्रभाचन्द्र ने चलाई ऐसा नागा । ३. चार्वाक (चारुवाक्चालाक । मुंडी मोडया। 'जन सन्देश' शोधांक २६ नवम्बर मन् ६४ के अक मे पृ० ५. लुंचक (लौच करने वाला) लुच्चा। ६. मस्करि पूरण= ३५८ पर लिखा है। "बुद्धिविलास" पृष्ठ ८४ से ८८ तक मस्करा । ७. ध्रवपद (ध्र पद) धुरपट । ८. कर्महीन (सिद्ध) मैं भी इस सम्बन्ध का वर्णन है। वहां फिरोज शाह के करमहीन (अभागा)। ६. निःकम (सिद्ध)-निकम्मा। वक्त में प्रभा चन्द्र ने वस्त्र धारण (लगोट धारण) किया १०. महत्तर-महतर (भंगी)। ११. भद्र भद्दा, भद्दर । लिखा है। १२. हजरत, उस्ताद, गुरू, दादा-चंट । १३. रामायण= 'बाहुबली चरित' के उक्त पद्यों मे जो महमद शाह का रामाण (विसवाद)। १४. महाभारत युद्ध । १५. वक्ता नाम लिखा है उसकी जगह 'जैनग्रन्थ प्रशस्ति सग्रह' भाग बकता। १६. हिन्दी (अनुवाद) करना=निंदा करना। २ पृष्ठ ३३ में "महमूद" पाठ है। १७. महाजन महाजिन्द । १८. राग (प्रेम) रहस्य । नग्न भारतवर्ष का इतिहास' (पाठ्य पुस्तक) मे नासिरुभट्रारकों ने वस्त्र कब कैसे धारण किया? नीचे इस पर हीन महमूद (दिल्ली के बादशाह) का राज्यकाल सन् विचार व्यक्त है: १२४६ से १२६६ यानि विक्रम सं० १३०३ से १३२३ भट्टारक पचनन्दि के गुरु भट्टारक प्रभाचन्द्र जी का तक का बताया है । यही समय प्रभाचन्द्र के पट्ट का पड़ता पट्टकाल "भट्टारक संप्रदाय" पुस्तक के पृष्ठ ६१ पर विक्रम है। इससे यही सिद्ध होता है कि प्रभाचन्द्र ने जिस बादसं० १३१० से १३०४ तक का लिखा है और वही बाहु शाह के मन को रंजित किया था वह बादशाह नासिरुद्दीन बली चरित (धनपालकृत अपभ्रंस) के कुछ पद्य उद्धृत है महमूद था। उसने सादा जीवन बिताया था। 'भट्टारक

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