Book Title: Anekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 109
________________ परा-सोचिए ३. सदाचारका सन्देश वाहक होना चाहिए। समाज में पूणा के साथ अन्तर्गमित वीतरागता, अहिंसा, सदाचार अपरिदेष फैलाने का माध्यम बन रही हैं। ग्रह, नीतिगत व्यवहार, धारवाएँ जीवन से तिरोहित हो अब तो चातुर्मास के साथ समाज का धन गाजे-बाजे, रही हैं। समाज का नेतृत्व विद्वानों व त्यागियों के हाथों पैम्पलेटबाजी व प्रदर्शन में बर्बाद होता है। जैनियों का। से निकल कर सेठों के हाथों में जा रहा है। सब संस्थाओं आचार व्यवहार इतना गिर गया है कि जैन पकौड़ी के संचालक एक तरफ से धन बटोरने में लगे हैं।' भण्डार, गोभी और प्याज से दुकान सजाते हैं। जैन नाम -(जन-सदेश' १३-८.८७ पृ०४८ से साभार) (पृ० २२ का शेषांश) शैय्या पर हैं। शास्त्र की गद्दी पर बैठकर धर्मचर्चा लालसा रहती है। चाहे शिष्य कैसा ही हो। बिना पाये करने वाले समझाने वाले विद्वानों की कमी आ गई है। सोना नहीं बन सकता। फलतः विद्वानों का नेतृत्व समाज पर नहीं रहा धनिकों का आवश्यक है-इन बातों पर हम विचार करें। वास्तहो गया, जो धर्म तत्व की गूढता को नहीं समझने वाले विक धर्म चलता रहे-यथेच्छ धर्म नहीं हो। काश ! समाज है। धर्मज्ञ हुए बिना उनका नेतृत्व धर्म शून्य ही हो। धर्मात्मा वृद्धजन इन बातों पर विचार करें-युवकों को उन्हें अपनी नेतागिरी राजनीति आदि के उपदेश प्रिय लगते तदनुकल डालें-ताकि जैनागम की अविच्छिन्न धारा बहती हैं और उनसे कई व्रती भी प्रभावित रहते हैं, उन्हें उत्सव, रहे। और सब जैन महावीर के शासन के नीचे चलते रहें। विधान, पंचकल्याण कराने की, शिष्य परिवार बढ़ाने की (वीर-वाणी से साभार) 955555555555555 5 555555550 जौलों अष्ट कर्म को विनाश नाहि सर्वथा, तौलों अन्तरातमा में धारा कोई बरनी। एक ज्ञानधारा एक शुभाशुभ कर्मधारा, दुहूं को प्रकृति न्यारी-न्यारी धरनी ॥ इतनो विशेष जुकरमधारा बन्धरूप, पराधीन सकति विविध बंध करनी। मानधारा मोक्षरूप मोक्ष की करनहार, दोष को हरनहार भी समुद्र तरनी॥ - आजीवन सदस्यता शुल्क : १०१.०० ६० वार्षिक मूल्य : ६) २०, इस अंक का मूल्य १ रुपया ५० पैसे विद्वान् लेखक अपने विचारों के लिए स्वतन्त्र होते हैं। यह आवश्यक नहीं कि सम्पावक-मण्डल लेखक के विचारों से सहमत हो। पत्र में विज्ञापन एवं समाचार प्रायः नहीं लिए जाते।

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