Book Title: Anekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 118
________________ स्व० श्री पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री के प्रति : मनीषी व श्रीमानों के उद्गार भी फूल चन्द्र शास्त्री अपने सुख-सुविधा की। इसलिए वह वर्ग ऐसे त्यागी'यह शिकायत तो हमेशा से सूनी जाती रही है कि मुनियों को पसन्द करता है जो इस वर्ग की ऐसी इच्छा धीरे-धीरे शास्त्रीय पण्डिनों का अभाव होता जा रहा है। की पूर्ति में सहायक होते हैं । इच्छा की पूर्ति होना अन्य पर इस समस्या को कमे सूलमाया जाय, यह बात अभी बात है। इच्छा को पूति हो या न हो। यह एक दुकान है तक निश्चित नही हो पाई। इसका हल निकलना भी जो दोनों के सहयोग से चलती है। कठिन है। यह वर्तमान स्थिति है, इसलिए हम जानते है कि जो बात यह है कि स्वराज्य के बाद एक ओर प्रत्येक गया, वह गया । इसकी पूर्ति होना असम्भव है। मान्य ध्यक्ति का लोकिक जीवन स्तर बढ़ने लगा है और दूसरी पण्डित जी श्री कैलाशचन्द्र जी गये, उनकी प्रति न हम ओर महगाई ने चरम सीमा गाठ ली है। समाज चाहे भी कर सकते हैं और न कोई अन्य विद्वान भी। वे अपने ढग तो यह समस्या सुलझ नहीं सकती। के बेजोड़ थे। पर्याय अस्थायी है, वह नियम से जाती है। जो वर्तमान त्यागी-मुनि हैं वे पढ़ने में विश्वास नही उसका स्थान अन्य नही ले सकता । करते । जब वैसे ही उनकी आहार-पानी प्रादि की अनु ___ आज वे हमारे बीच मे नही है। उनके वियोग को हमे सहना पड़ रहा है । उनका साहित्य हमारे लिए मार्ग कुलताए बन जाती है तो वे पढे क्यों। उन्हे ठण्ड से बचने के लिए हीटर चाहिए, गर्मी के ताप से बचने के लिए पखा दर्शक बने । और मार्ग दर्शक के रूप में हम सदा उनको चाहिए, एक स्थान से दूसरे स्थान तक उनके परिग्रह को याद करते रहें यह इच्छा है।' टोने के लिए गोटर गाड़ी चाहिए, उनकी सेवा टहल आदि श्रीजमोनल श्री जगन्मोहन लाल शास्त्रीके लिए आदमी चाहिए, ड्राइवर नाहिए । ममान इस सब 'उनको लेखनी दमदार थी, आगम पक्ष सदा उनके का प्रबन्ध उनके बिना लिखे पड़े ही करती हैं। वे फिर सामने रहता था और समाज की उन्नति उनका ध्येय था । पढ़े लिखें क्यों। कुरीतियों, धामिक शिथिलनाओ की ओर उनका कड़ा मार्ग के विरुद्ध समाज की इस विषय में रुचि का कदम रहता था। विरोध और निन्दा और अन्याय भी कारण है उसकी चाह । समाज मे कुछ कुटुम्ब ऐसे है जो उनको सहना पड़ा, पर पैर पीछे नही किए । वे शुरवीर ताबीन आदि में विश्वास करते है । देवी-देवता में विश्वास थे दह सकल्पो थे । साहित्य क्षेत्र में षटखण्डागम, कषाय करते हैं । त्यागी-मुनि भी ऐसे ही कुटुम्बों को इस कम पाहुड जैसे वरिष्ठ आगम के सूत्रों की तथा उनकी कठिनजोरी को जानते है। इसलिए वे अपने त्यागी-मुनि के तम टीकाओ का अनुवाद करने में उनका प्रमुख हाथ रहा, जीवन को लोकिक सुख रूप बनाए रखने के लिए इस मार्ग अनेक ग्रन्थो की स्वय टीका की, अनेक ग्रन्थों का अनको अपनाते हैं। धर्मशास्त्र तो मक है। हस्तक्षेप करे तो .. कैसे करे। मेरी उनके प्रति सविनय सप्रेम श्रद्धांजलि है।' त्यागी मुनि जानते है कि ऐसा करने से हम त्यागी मुनि भी बने रह सकते है और लौकिक इन्छाएं भी पूरी श्री रतम लाल कटारियाकर सकते है। समाज में ऐसा वर्ग या सम्प्रदाय है जो काशी के स्यावाद महाविद्यालय के वे प्राण थे, उन्होने इसका सापक है। आगम की उसे चिन्ता नहीं, चिश्ता है पाजीवन सुदीर्घ काल तक वहाँ अध्यापन का कार्य किया

Loading...

Page Navigation
1 ... 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149