Book Title: Anekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 99
________________ श्वेताम्बर तेरा-पंथ द्वारा दिगम्बर समाज पर खुला-प्रहार (ले० श्री पप्रचन्द्र शास्त्री अभी हमने एक पुस्तक देखी 'बाल कहानियाँ' । इसमें उसे वह अन्दर ही अन्दर रखता था, कभी भी काम में नहीं इतिहास से और आगमिक तथ्यों से हटकर दिगम्बर-मत लेता था। कई वर्ष व्यतीत हो गए। ममत्व की भावना के विषय में बहुत कुछ ऊल-जलूल मनमाने ढंग से लिखा दिनों-दिन बढती ही गई। गया है। पुस्तक आदर्श साहित्य सघ से प्रकाशित और एक दिन वह गोचरी गया हुआ था गुरु ने सोचाअणुवत-विहार नई दिल्ली से प्राप्य है और इसके लेखक क्या करना चाहिए यह चेला पछेवड़ी को काम में नहीं लेता है-मुनि श्री कन्हैयालाल, तेरापथी श्वेताम्बर आचार्य है। ममत्व रखता है। आखिर गहराई से चितन कर गुरु तुलसी के शिष्य । ने उस पछेवड़ी के टुकड़े-टुकड़े कर सन्तो को दे दिए । वह पुस्तक के आलेखों में पृ० ४९० पर एक शीर्षक गोचरी से वापिस आया। पता लगते ही उसके हृदय में 'विगम्बरमत' के नाम से छपा है। यह आलेख जैन एकता क्रोध की चिनगारियां उछलने लगीं। गुरु के प्रति द्वेष का ढोल पीटने वाले आ० तुलसी एवं उनके तेरापथ द्वारा उबलने लगा। सोचा-कपड़ा रखने वाले मुनि अपनी महान् दिगम्बर परम्परा पर खुला प्रहार ही है । यह पुस्तक साधना में कभी भी सफल नही हो सकते। क्योंकि वस्त्रों बताती है कि आ० तुलसी जी अपने भक्तो मे दिगम्बर पर ममत्व (मूळ भाव) आये बगैर नहीं रहता। अत: इस मुनि और दिगम्बर मत के प्रति किस प्रकार घृणा का भाव संघ में रहना उचित नही है। अलग होकर वस्त्रों का भर रहे हैं। उन्होंने अबोध बालको तक में बैमनस्य के परिहार कर साधना करना श्रेयस्कर है। बीजारोपण करने को भी नहीं बख्शा। जबकि श्वेताम्बर चिन्तन क्रियान्वित हुआ। कपड़ो का परित्याग कर परम्परा स्वयं मानती है कि भगवान ऋषभदेव तथा नग्न हुआ। संघ से अलग होकर साधना करने लगा। उस भगवान महावीर दिगम्बर थे। मुनि ने अपनी बहिन 'पालका' को भी नग्न होने के लिए हम श्वेताम्बराचार्यों के प्रन्यो से दिगम्वरत्व की प्रेरित किया। वन्धव मुनि के सकेत को वह कैसे टाल प्राचीनता सिद्ध करें इससे पहिले पाठकों को उस प्रसग से सकती थी? उसने कपड़ो का परित्याग किया; बह नग्न अवगत करा दें जो उस पुस्तक में छपा है । पाठक उतने बनी। लोगो मे अपवाद होने लगा. मुख-मुख पर निन्दा। मात्र से ही समझ जाएगे कि तेरापथी श्वेताम्वर-साधु किस जैन-समाज को निन्दा । घृणा । प्रकार फुट के बीज बोने में लगे हैं-रसगुल्लों के नाम पर विष दे रहे हैं। अपरिमित अपवाद सुनकर मुनिवर ने चिन्तन कर पुस्तक का अंश इस भांति है अपनी बहन को लाल कपड़े पहना दिए । बाई जी के नाम दिगम्बर मत से प्रसिद्ध कर दिया। स्त्री कपड़े पहने बिना रह नहीं भगवान महावीर के ६०६ वर्ष पश्चात् दिगम्बर सकती, इस पुष्टि से स्त्री को मोक्ष नहीं, यह बात वायु की सम्प्रदाय का प्रारम्भ हुआ, ऐसी मान्यता है । एक बुटकना भांति सर्वत्र फैल गई। शास्त्रों का नया निर्माण हुआ। नाम का साधु था। वह गुरु से बढ़कर भी अपने आपको वस्त्र रखने वाले को मोक्ष नहीं मिल सकता। ऐसे सिद्धान्तों विशेष ज्ञानी समझता था। अहम् के उच्च शिखर पर चढ़ा का प्रचार होने लगा लोग रन साधुओं को दिगम्बर कहकर सबको निम समझता था। उसके पास बहुत ही पुकारने लगे। आगे जाकर धीरे-धीरे वहां से दिगम्बर मत मूल्यवान एक पछेवड़ी थी, उस पर ममत्व होने के कारण के नाम से प्रसारित हो गया।

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