Book Title: Anekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 62
________________ २२, वर्ष ४०, कि० २ अनेकान्त राध खेल्डा के हिसार निवासी तोसड साहू का आश्रय उदारता एव सहिष्णुता का अच्छा वर्णन किया है।" पाकर सम्मइ जिणचरिउ की रचना प्रारम्भ कर देते है।" इसमें सन्देह नही कि रंगरसिंह का समय राजनैतिक दृष्टि कवि ने इस परिवार की ५ पीढ़ियों के कार्यकलापो का से बड़ा ही सघर्षपूर्ण था। गोपाचल के उत्तर में सैयदवश, विवरण दिया है, जिसमे तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक दक्षिण में मांडो के सुल्तान तथा पूर्व में जौनपुर के शकियों एवं सांस्कतिक स्थिति की झांकी मिलती है। ने डुगर सिंह को घोर यातनाएँ दी विन्तु डूंगरसिंह ने अपनी __अपने गुरु-स्मरण के प्रसग में कवि ने यश.कीति के चतुराई तथा पुरुषाय-पराक्रम से सबके छक्के छुड़ा दिए पर्ववर्ती एवं समकालीन निम्न भट्टारको के उल्लेख किऐ और सभी दृष्टियों से गोपाचाल को सुखी-समृद्ध बनाया।" हैं"-देवसेन गणि, विमलसेन, धर्मसेन, भावसेन, सहस्रकोति गुणकीति यशः कीति (गुरु) एव मलयकीति । कठोर अभ्रिश के पूर्ववर्ती कवियों के उल्लेख संयम एवं तपश्चरण के साधक होने के साथ-साथ ये कवि ने पूर्ववतीं कवियो के स्मरण-प्रसग मे अपभ्रश भट्रारक पारंगत विद्वान् एव लेखक तो थे ही, उत्साही के ५ कवियो का श्रद्धापूर्वक स्मरण किया है जिनके नाम यवकों को कवि एव लेखक बनने की प्रेरणा एवं प्रशिक्षण हैं-चउमूह दोण सयभ, पुप्फयंतु एव वीक। इनमें से भी प्रदान करते थे। मध्यकालीन विविध विषयक साहित्य- सयम, पुप्फयतु" एवं वीरु कवियो की रचनाएं प्रकाशित लेखन एव कला-कृतियो के निर्माण में इनके अभूतपूर्व हो चुकी है बाकी के च उमुह एव दोण की रचनाएँ अज्ञात ऐतिहासिक कार्यों को विस्मत नही किया जा सकता। एव अनुपलब्ध है। बहुत सम्भव है कि रघु को उनकी समाज को साहित्य-सरक्षण, साहित्य रसिक तथा साहित्य- रचना देखने का रचनाएँ देखने का अवसर मिला हो। इरधू ने इन कवियो 7 मि. स्वाध्याय की प्रेरणा प्रदान करते थे। इनका समय विभिन्न की प्रशसा में लिखा है कि वे कवि सूर्य के प्रकाश के प्रमाणों के आधार पर वि० स० १४०० से १४६८ के मध्य समान ही ज्ञान के प्रकाशक है। मैं तो उनके आगे टिमस्थिर होता है। इस विषय पर मैंने अन्यत्र चर्चामा टिमाते हुए दीपक के समान हीनगुण वाला हूँ।" ५४ रचना स्थल आश्रयदाता परिचय कवि ने लिखा है कि उसने तोमरवशी राजा डूगरसिह जैसा कि पूर्व में वहा जा चका है सम्म इजिणचरिउ राज्य में प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की है। उसने यह की रचना हिसार-निवासी साह तोसड के आश्रय मे की भी लिखा है कि उसने गोपाचल दुर्ग में अपने भट्टारक गुरु गई थी।" साह तीसड की धर्मपत्नी आजाही ने गोपाचलयशकीति के मान्निध्य में जनविद्या का अध्ययन किया दुर्ग में एक विशाल चन्द्रप्रभ की मूर्ति भी स्थापित कराई है इन उल्लेखो से विदित होता है कि अधिकाश मूतियो थी।" कवि ने इस वश की भूरि-भूरि प्रशमा की है। की प्राण-प्रतिष्ठा का कार्य रइघू ने सम्पन्न किया था। उसने लिखा है कि तोसड के बडे भाई सहदेव ने अनेक सुप्रसिद्ध इतिहासकार डा. हेमचन्द्र राय चौधुरी महोदय मतियो की प्रतिष्ठा कराई थी।" इस वश के वील्हा साह के अनुसार राजा डूगरसिंह एव उनके पुत्र राजा कीतिसिंह का सम्राट फिरोज शाह द्वारा सम्मान किया गया था। के राज्यकाल में लगभग ३३ वर्षों तक इन जैन मूतियो धर्मा नाम पुत्र सघपति था क्योकि उसने गिरनार-पर्वत की का निर्माण एवं प्रतिष्ठा कार्य होता रहा ।" इन उल्लेखों यात्रा के लिए एक विशाल संघ निकाला था।" इसी वश से उक्त राजाओ का जैन धर्म के प्रति प्रेम स्पष्ट विदित का छीतम अपने समय के सभी व्यापारियों के सघ का होता है। अध्यक्ष था, जिसकी देखरेख मे ६६ प्रकार के व्यापार समकालीन राजा चलते थे।" जालपु भी व्यापारिक नीतियो के जानकार गोपाचल के राजा अंगर सिंह का उल्लेख ऊपर किया के रूप में प्रसिद्ध था । सत्यता पवित्रता एवं विश्वसनीयता जा चुका है। कवि ने उसके व्यक्तित्व, पराक्रम एव ही इस परिवार के व्यापार की नीति थी।

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