Book Title: Anekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 91
________________ एक अप्रकाशित कृति अमरसेन चरिउ On० कस्तूरचन्द्र 'सुमन' एम. ए. पी-एच. डी. प्रस्तुत कृति का सामान्य परिचय अनेकान्त वर्ष ३७ इच्छा से मुनियों का स्मरण करते हैं। अपने पुण्य योग से किरण ४ में प्रकाशित किया गया है। ग्रन्थकार और ग्रंथ चारण मुनियों का आगमन देख वे हर्षित हुए, उन्होंने के प्रेरक का परिचय प्रस्तुत करने के बाद प्रस्तुत लेख में आहार दिया। मुनि आहार लेकर अपने यथेष्ट स्थान की ग्रन्थ की बिषयबस्तु का अंकन करना लेखक का ध्येय है। ओर गमन कर जाते हैं। रचयिता पण्डित माणिक्कराज ने सम्पूर्ण कृति में द्वितीय परिच्छेद मुनि अमरसेन का जीवनवृत्त अकित किया है। उन्होने चारण मुनियों के आहार लेकर चले जाने के पश्चात् इसे सात परिच्छेदों में विभाजित करते हए प्रथम परिच्छेद सेठ अभयकर दोनों भाइयों से भोजन के लिए निवेदन के आदि मे चौबीस तीर्थंकरों की वन्दना करके उनकी करता है किन्तु दोनों भाई चतुर्विध आहार का त्याग कर वाणी हृदयङ्गम करते हुए गोतम गणधर तथा उनको देते हैं । सेठ प्रीतिभोज में सम्मिलित होने के लिए आग्रह परम्परा में हुए मुनियो की स्तुति पूर्वक अपनी गुरु परम्परा करता हैं किन्तु दोनों भाई स्वीकृति नही देते। अन्त में का उल्लेख किया है। अनन्तर ग्रन्थ के प्रेरक चौधरी देव. निराहार रहते हुए नमस्कार मंत्र जपते-जपते समाधिपूर्वक राज के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापिन की है। दुर्जन और शरीर त्याग सनत्कुमार स्वर्ग मे देव हये। सज्जनों के स्वभाव का अकन करने के बाद मूल कथा वहां से चयकर दोनों भाई जम्बूद्वीप-भरतक्षेत्र के आरम्भ हुयी है। कलिंग देश में विद्यमान दलवट्टण नामक नगर के राजा राजा श्रेणिक महावीर के समवशरण में जाकर गौतम सूरसेन और रानी विजयादेवी के अमरसेन बहरसेन नामक गणघर से ग्वाल-बाल छ। भवान्तर पूछते है। उत्तर मे युगल पुत्र हुए। हस्तिनापुर का राजा सूरसेन का मित्र अमरसेन वइरसेन युगल भाइयो के पूर्वभव का अकन इस था। अमरसेन वइरसेन हस्तिनापुर मे ही जनमें और युवा परिच्छेद की विषय-बरतु है। ये दोनो भाई पूर्वभव मे हुए । हस्तिनापुर का राजा देवदत्त सूरसेन नप के निकट भरतक्षेत्र मे ऋषभपुर नगर के निवासी अभयकर सेठ के जाता है इधर अमरसेन वइरसेन के सौन्दर्य को देखकर घण्णंकर पुण्णकर नामक कर्मचारी थे। ससार से उदासीन राजा देवदत्त की रानी देवश्री सूरमेन के पुत्रो पर मुग्ध होकर उन्होने ब्रह्मचर्य धारण कर लिया था। उनके हो जाती है। वह अमरसेन वइरसेन से अपना मनोरथ भी धार्मिक स्नेह को देखकर सेठ अभयकर उन्हे स्नान करा- प्रकट करती है किन्तु सफलता न मिलने पर अपने शील कर जिन मन्दिर ले जाता है। पूजा के लिए वह सेठ भंग करने का आरोप लगाकर राजा देवदत्त से उन्हें मार अपनी द्रव्य इन दोनो भाइयो को देता है किन्तु वे द्रव्य डालने का आदेश करा देती है। नहीं लेते। मुनिराज के समझाने पर भी वे अपनी प्रतिज्ञा चाण्डाल कुमारों को बचा लेते है। वे कुमारों को का निर्वाह करते हैं । उनके पास पांच कौडियां थी जिनसे ऐसे स्थान में चले जाने के लिए कहते हैं जहाँ राजा पूजन सामग्री लेकर वे भाव पूर्वक जिनेन्द्र की अभिषेक देवदत्त न पहुंच सके । कुमार चले जाते हैं । इधर चांसल पूर्वक पूजा करते हैं। दो कृत्रिम नरमुण्ड राजा को देकर कुमारों के मारे जाने घर आने पर सेठानी उन्हें सरस स्वादिष्ट भोजन की सूचना द देते हैं। परोसती है। दोनों पाई आहार आहारदान में देने की अमरसेन वदरसेन दोनों भाई जंगल में पककर एक

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