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वीर सेवा मंदिर पुस्तकालय
सनग्लन मोर पहर। २१, दरियागंज, देइली
अनेकान्त
परमागमस्य बीजं निषिद्धिजात्यन्धसिन्धरविधानम् । सकलनय विलसितानां विरोधमयनं नमाम्यनेकान्तम् ॥
वर्ष १५ । वीर सेवा मन्दिर, २१, दरियागंज, देहली-६ ) अप्रैल किरण, १ (चैत्र शुक्ला १३, वीर निर्वाण सं० २४८८, विक्रम सं० २०१६) सन् १९६२
श्री अषभस्तुतिः ततोतिता तु तेतीतस्तोतृतोतीतितोतृतः । ततोऽतातिततोतोते ततता ते ततोततः ॥
-स्वामी समन्तभद्राचार्य
अर्थ-हे भगवान् ! आपने, विज्ञान वृद्धि को प्राप्ति को रोकने वाले इन ज्ञानावरणादि कर्मों से अपनी विशेष रक्षा की है-ज्ञानावरणादि कर्मों को नष्ट कर केवल ज्ञानादि विशेष गुणों को प्राप्त किया है। तथा आप परिग्रहरहित-स्वतन्त्र हैं। इसीलिए पूज्य और सुरक्षित हैं। एवं आपने ज्ञानावरणादि कर्मों के विस्तृत-अनादिकालिक सम्बन्ध को नष्ट कर दिया है अतः आपकी विशालता प्रभुता स्पष्ट है । आप तीनों लोकों के स्वामी हैं।