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अमरसेनचरिउ सपरिवार हस्तिनापुरमें ही रहने लगा था। राजा देवसेनकी रानी देवश्री अमरसेन-वइरसेन को देखकर पहले तो उनके शारीरिक-सौन्दर्य और पराक्रम पर आकृष्ट होती है किन्तु बाद में वह उनसे ईर्षा करने लगती है । वह उन पर दोषारोपण करती है । अपने शील भंग करने की कोशिश करने का आरोप लगाकर राजा से उनका घात कराना चाहती है। राजा देवदत्त रानी देवश्री पर विश्वास करके उन दोनों कुमारों पर रुष्ट हो जाता है तथा चाण्डालों को उन्हें प्राणदण्ड देने का आदेश दे देता है।
चाण्डाल कुमारों को देखकर राजा के इस अविवेक पूर्ण निर्णय की निन्दा करते हैं । वे इन दोनों भाइयों का घात नहीं करते । दूर चले जाने के लिए कहकर मक्त कर देते हैं तथा लाक्षादि से रंजित दो कटे हुए सिर ले जाकर राजा देवसेन को कुमारों के वध की सूचना दे देते हैं । ___ दोनों कुमार चलते-चलते एक सघन वन में पहुँचते हैं। राह चलतेचलते थक जाने के कारण एक वृक्ष के नीचे वे विश्राम करते हैं। वृक्ष पर रहने वाला यक्ष दम्पत्ति कूमारों के सौन्दर्य को देखकर उन पर मुग्ध हो जाता है। कीर और कीरी के वेप में वह यक्ष दम्पत्ति कुमारों को दो आम्रफल लाकर देता हैं। बड़ा आम्रफल अपने भक्षण करने वाले को सात दिन में राज्य प्राप्त करानेवाला और छोटा आम्रफल अपने भक्षण करनेवाले को करुला करने पर पाँच सौ रत्न देने वाला था। दोनों फल वइरसेन को प्राप्त हुए। उसने बड़ा फल अमरसेन को दिया तथा छोटे फल से स्वयं रत्न प्राप्त कर दिव्य भोग भोगने लगा।
[द्वितीय सन्धि ] रात्रि-विश्राम के पश्चात् दोनों कुमार कंचनपुर के नन्दन वन आये । वइरसेन भोजन सामग्री लाने के बहाने कंचनपुर गया। अमरसेन वन में एकाकी रहा । इसी बीच कंचनपुर के राजा का मरण हुआ। सुयोग्य उत्तराधिकारी के अभाव में मंत्रियों ने हाथी द्वारा अभिपित्त पुरुष को राजा बनाये जाने का निश्चय किया। संड पर कलश देकर हाथी नगर में घुमाया गया किन्तु नगर-भ्रमण के पश्चात् वह नन्दन वन की ओर गया । वहाँ उसने कुमार अमरसेन का अभिषेक किया। मंत्रियों और नगरवासियों ने अमरसेन को कंचनपुर का राजा घोषित किया। राजा बनने के पश्चात् अपने भाई वइरसेन के कंचनपुर से लौट कर न आने के कारण चिन्तित होकर अमरसेन ने भाई को खाज कराई किन्तु वह उसे नहीं मिला। अन्त में निराश होकर राज्य करने लगा।
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