________________
अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए-यही ज्ञानियों के ज्ञान-वचनों का सार है । अहिंसा, समता-सब जीवों के प्रति आत्मवत्-भाव-इसे ही शाश्वत धर्म समझो। अहिंसा की परिभाषा
__अहिंसा को भगवान ने जीवों के लिए कल्याणकारी देखा है । सर्वजीवों के प्रति संयमपूर्ण जीवन-व्यवहार ही अहिंसा है ? अहिंसा का स्वरूप
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति-ये सब अलग-अलग जीव हैं । पृथ्वी आदि हरेक में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व के धारक अलग-अलग जीव हैं ।
___ 'उपर्युक्त स्थावर जीवों के उपरान्त त्रस प्राणी हैं, जिनमें चलने-फिरने का सामर्थ्य होता है । ये ही जीवों के छह वर्ग हैं । इनके सिवा दुनिया में और जीव नहीं हैं।'
'जगत् में कई जीव त्रस हैं और कई जीव स्थावर । एक पर्याय में होना या दूसरी पर्याय में होना कर्मों की विचित्रता है । अपनी-अपनी कमाई है जिससे जीव त्रस या स्थावर होते हैं ।'
___'एक ही जीव, जो एक जन्म में त्रस होता है, दूसरे जन्म में स्थावर हो सकता है । त्रस हों या स्थावर, सब जीवों को दु:ख अप्रिय होता है-यह समझकर मुमुक्षु सब जीवों के प्रति अहिंसा-भाव रखें ।
मनसा, वाचा और कर्मणा जो स्वयं जीवों की हिंसा करता है, दूसरों से करवाता है या जो जीव-हिंसा का अनुमोदन करता है, वह प्रतिहिंसा को जगाता हुआ वैर की वृद्धि करता है ।
ऊर्ध्व, अधः और तिर्यक् तीनों लोकों में जो भी त्रस और स्थावर जीव हैं, उन सबके प्राणातिपात से विरत होना चाहिए । सब जीवों के प्रति वैर की शांति को ही निर्वाण कहा है । 1. सूत्रकृतांग, 1/1/4/10 : एवं खु नाणिणो सारं, जैन हिंसई किंचण। अहिंसा
समयं चेव, एयावन्तं वियाणिया ।। 2. दशवैकालिक 6/9 : अहिंसा निउणं दिट्ठा, सव्वभूएसु संजमो। 3. सूत्रकृतांग 1/11/5 4. सूत्रकृतांग 1/1/8 5. वही, 1/1/1/3
सयं तिवायए पाणे, अदुवन्नेहिं घायए।
हणन्तं वाणुजाणाइ, वेरं वड्ढइ अप्पणो। 6. वही, 1/1/1/3
उड्ढं अहे च तिरियं, जे केइ तसथावरा। सव्वत्थ विरइं कुज्जा, संति निव्वाणमाहियं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org