Book Title: Agam Sutra Satik 15 Pragnapana UpangSutra 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 525
________________ १९८ प्रज्ञापनाउपासूत्रम्-२-२३/२/-/५४३ तेइंदिया णं भंते ! जीवा नाणावरणिजस्स किंबंधति?, गो०! जह० सागरोवमपन्नसाए तिन्नि सत्तभागा पलितोवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया उ० ते चेव पडिपुन्ने बंधंति, एवं जस्स जतिभागा ते तस्स सागरोवमपन्नासाए सह भाणितव्वा, तेइदियाणभंते! मिच्छत्तवेदणिजस्म कम्मस्स किंबंधति?, गो०! ज० सागरोवमपन्नासं पलितोवमस्सासंखेजतिभागेणं ऊणयं उ० तं चेव पडिपुण्णं बंधति, तिरिक्खजोणियाउयस्स जह० अंतो० उक्को० पुवकोडिं सोलसेहिं राइंदियतिभागेण य अहियंबंधति, एवंमणुस्साउयस्सवि, सेसंजहा बेइंदियाणं जाव अंतराइयस्स। चउरिदियाणंभंते! जीवा नाणावरणिजस्स किंबंधति?, गो०!जह० सागरोवमसयस तिण्णि सत्तभागे पलितोवमस्स असंखेजतिभागेणं ऊणए उक्को० ते चेव पडिपुन्ने बंधति, एवं जस्स जति भागा तस्स सागरोवमसतेण सह भाणितव्या, तिरिक्खजोणियाउयस्स कम्मरस जह० अंतो० उ० पुब्बकोडिं दोहिं मासेहिं अहियं, एवं मणुस्साउयस्सवि, सेसं जहा बेइंदियाणं, नवरं मिच्छत्तवेदणिजस्स जह० सागरोवमसतं पलितोवमस्स असंखेजतिभागेणं ऊणयं उ० तं चेव पडिपुन्नं बंधति, सेसं जहा बेइंदियाणं जाव अंतराइयस्स। असण्णीणंभंते! जीवा पंचिंदिया नाणावरणिजस्स कम्मस्स किंबंधति?, गो०! जह० सागरोवमसहस्सस्स तिन्निसत्तभागे पलितोवमस्सासंखेजतिभागेणंऊणए उक्को० ते चेव पडिपुण्णे, एवं सो चेव गमो जहा बेइंदियाणं, नवरं सागरोवमसहस्सेणं समं भाणितव्यंजस्स जति भागत्ति, मिच्छतवेदणिजस्सजह० सागरोवमसहस्संपलितोवमासंखेजतिभागेणंऊणयंउ० तं चैवपडिपुण्णं, नेरइयाउयस्स जह० दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई उक्कोसेणं पलितोवमस्स असंखेजतिभागं पुब्बकोडितिभागब्भहियं बंधंति, एवं तिरिक्खजोणियाउयस्सवि, नवरं जह० अंतो०, मणुयाउयस्सवि देवाउयस्स जहा नेरइयाउयस्स, असण्णी णं भंते ! जीवा पंचिंदियनिरयगतिनामाए कम्मस्स किंबंधति?, गो०! जह० सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागे पलितोवमस्स असंखेजतिभागेणंऊणया उक्को० ते वेव पडिपुण्णे, एवं तिरियगतितेवि, मणुयगतिनामाएति एवं चेव, गवरं जह० सागरो वमसहस्सस्स दिवढे सत्तभागंपलितोवमस्सासंखेजइभागेण ऊणंउक्को० तंचेवपडिपुण्णं बंधति, एवं देवगतिनामाए, नवरं ते सागरोवमसहस्सस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्सासंखे० ऊणं उ० तं चेव पडिपुन्नं वेउब्बियसरीरनामाए पुच्छा, गो० ! ज० सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागे पलितोवमस्सासंखेजतिभागेण ऊणे उक्को० दो पडिपुन्ने बंधति, सम्मत्तसम्मामिच्छत्तआहारगसरीरनामाते तित्थगरनामाए न किंचि बंधंति, अवसिडं जहा बेइंदियाणं, नवरं जस्स जत्तिया भागा तस्स सा सागरोवमसहस्सेणं सह भाणियतव्वा, सव्वेसिं आणुपुब्बीए जाव अंतराइयस्स। सण्णी णं भंते ! जीवा पंचिंदिया नाणावरणिजस्स कम्मस्स किं बंधति ?, गो० ! ज० अंतोमु० उ० तीसं सा० कोडोकोडीओ तिन्नि वाससहस्साइं अबाहा, सण्णी णं भंते ! पंचिंदिया निदापंचगस्स किं बंधंति ?, गो० ! जह० अंतो० सागरोवमकोडाकोडीओउ० तीसंसागरोवमकोडाकोडीओतिन्नियवाससहस्साइंअबाहा, दंसणचउक्कस्स जहा नाणावरणिजस्स, सायावेदणिजस्स जहाओहिया ठिती भणिता तहेव भाणितव्वा, ईरियाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664