Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 18
________________ १७ नमो नमो निम्मलदसणस्स १४ जीवाजीवाभिगम| उपांगसूत्र-३-हिन्दी अनुवाद (प्रतिपत्ति-१-"दुविह") [१] अरिहंतो को नमस्कार हो । सिद्धो को नमस्कार हो । आचार्यो को नमस्कार हो। उपाध्याय को नमस्कार हो । सर्व साधुओ को नमस्कार हो । ऋषभ आदि चौबीस तीर्थकरो को नमस्कार हो । इस जैन प्रवचन में द्वादशांग गणिपिटक अन्य सब तीर्थंकरों द्वारा अनुमत है, जिनानुकूल है, जिन-प्रणीत है, जिनप्ररूपित है, जिनाख्यात है, जिनानुचीर्ण है, जिनप्रज्ञप्त है, जिनदेशित है, जिन प्रशस्त है, पर्यालोचन कर उस पर श्रद्धा करते हुए, प्रतीति करते हुए, रुचि रखते हुए स्थविर भगवंतों ने जीवाजीवाभिगम अध्ययन प्ररूपित किया । [२] जीवाजीवाभिगम क्या है ? जीवाजीवाभिगम दो प्रकार का है, १. जीवाभिगम और २. अजीवाभिगम | [३] अजीवाभिगम क्या है ? अजीवाभिगम दो प्रकार का है-१. रूपी-अजीवाभिगम और २. अरूपी-अजीवाभिगम ।। [४] अरूपी-अजीवाभिगम क्या है ? दस प्रकार का है-१. धर्मास्तिकाय से लेकर १० अद्धासमय पर्यन्त जैसा कि प्रज्ञापनासूत्र में कहा गया है । [५] रूपी-अजीवाभिगम क्या है ? रूपी-अजीवाभिगम चार प्रकार का है-स्कंध, स्कंध का देश, स्कंध का प्रदेश और परमाणुपुद्गल। वे संक्षेप से पांच प्रकार के हैं१. वर्णपरिणत, २. गंधपरिणत, ३. रसपरिणत, ४. स्पर्शपरिणत और ५. संस्थानपरिणत । जैसा प्रज्ञापना में कहा गया है वैसा कथन यहाँ भी समझना । [६] जीवाभिगम क्या है ? जीवाभिगम दो प्रकार का है, संसारसमापन्नक जीवाभिगम और असंसारसमापन्नक जीवाभिगम । [७] असंसार-प्राप्त जीवाभिगम क्या है ? असंसारप्राप्त जीवाभिगम दो प्रकार का है, अनन्तरसिद्ध असंसारप्राप्त जीवाभिगम और परंपरसिद्ध असंसारप्राप्त जीवाभिगम | अनन्तरसिद्ध असंसारप्राप्त जीवाभिगम कितने प्रकार का कहा गया है ? पन्द्रह प्रकार का है, यथा तीर्थसिद्ध यावत् अनेकसिद्ध । परम्परसिद्ध असंसारप्राप्त जीवाभिगम क्या है ? अनेक प्रकार का है । यथा-प्रथमसमयसिद्ध, द्वितीयसमयसिद्ध यावत् अनन्तसमयसिद्ध । यह असंसारप्राप्त जीवाभिगम का कथन पूर्ण हआ । [८] संसारप्राप्त जीवाभिगम क्या है ? संसारप्राप्त जीवों के सम्बन्ध में ये नौ प्रतिपत्तियाँ हैं-कोई कहते हैं कि संसारप्राप्त जीव दो प्रकार के हैं । कोई कहते हैं कि संसारवर्ती जीव तीन प्रकार के हैं । कोई कहते हैं कि संसारप्राप्त जीव चार प्रकार के हैं । कोई कहते हैं कि पाँच प्रकार के हैं । यावत् कोई कहते हैं कि संसारप्राप्त जीव दस प्रकार के हैं । 72

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