Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 14
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ [ बीमागमसुधासिन्धुः // चतुर्दशमी विमामा सीसे नागज्जुणरिसीणं // 45 // सुमुणिय-निचानिच्चं सुमुणिय-सुत्तत्यधारयं वन्दे / सभाकुभावणातत्थं लोहिच्च-णामाणं 30 (निच्चं / वंदेऽहं लोहिच्चं सब्भावुभावणातच्च) // 46 // श्रथमहत्थखाणिं सुसम(व)णवक्खाण-कहणनिव्वाणिं / पयईइ महुरवाणिं पयश्रो पणमामि दूरगणिं 31 // 47 // तवनियम-सच्चसंजम-विणयजव-खंतिमद्दव-रयाणं / सील-गुणगबियाणं श्रृणुयोग-जुगप्पहाणाणं // 48 // सुकुमाल-कोमलतले तेसिं पणमामि लवखणपसत्थे / पाए पावयणीणं पाडिच्छयसएहिं पणिवइए // 41 // जे अन्ने भगवंते कालियसुयश्राणुशोगिए धीरे / ते पणमिऊण सिरसा नाणसर पख्वणं वोच्छं // 50 // इइ थेरावलिया // सं.लक्ष्ण 1 ग 2 चालणि 3 परिपूणग 4 हंस 5 महिस 6 मेसे य 7 / मसग 8 जलूग 1 विराली 10 जाग 11 गो 12 मेरेि 13 अाभेरी (आभीरे) 14 // 1 // सा समालो तिविहा पन्नत्ता, तं जहा-जाणिया, अजाणिया, दुविअड्डा, (जाणिवा जहा-खीमिव जहा हंसा जे घुट्टन्ति इह गुरुगुणसमिद्धा / दोसे अविवज्जति तं जाणसु जाणियं परिसं // 1 // अजाणिया जहा-जा होइ पगइमहुरा मियछावय-सीहकुक्कुडयभुथा। रयणमिव असंठविश्रा, अजाणिश्रा सा भवे परिसा॥२॥ दुविश्रष्टा नहा-न य कत्थई निम्मायो न य पुच्छइ परिभवस्स दोसेणं / वत्थिव्व वायपुराणों फुट्टइ गामिल्लय विग्रहो // 3 // ) ____नाणं पञ्चविहं पनतं, तं जहा-श्राभिणियोहिअनाणं, सुअनाणं, श्रोहिनाणं, मणपज्जवनाणं केवलनाणं // सूत्रं 1 // तं समासयो दुविहं पनतं, तंजहा-पचक्खं च परोक्खं च 2 // सू० 2 // से किं तं पञ्चक्खं ? पचक्खं दुविहं पन्नतं, तंजहा-इंदियपञ्चक्खं च नोइंदियपच्चक्खं च 2 / से किं तं इंदियपञ्चक्खं ? इंदियपञ्चक्खं पंचविहं पराणत्तं, तं जहा-सोइन्दियपञ्चक्खं चक्विंदियपञ्चक्खं, घाणिदियपञ्चक्खं, रसणेंदियपञ्चवखं, फासिदिनपचक्खं, से तं इंदियपञ्चक्खं 2 // सू० 3 // से किं तं नोइंदिन.
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