________________ . , एव आगम निबंधमाला से णो काहिए, णो पासणिए, णो संपसारए, णो मामए, णो कयकिरिए, वईगुत्ते, अज्झप्पसंवुडे परिवज्जइ सया पावं, एवं मोणं समणुवासिज्जासि / फिर भविष्य में कभी स्त्री संबंधी कथा विकथा न करे, काम कथाएँ न करे / वासनापूर्ण या आसक्ति दृष्टि से स्त्रियों को न देखे / परस्पर स्त्रियों से संपर्क लेन देन आदि न करे / उनके प्रति ममत्व अथवा रागभाव नहीं बढावे / शरीर का साजसज्जा, विभूषा वृत्ति न करे किंतु वाचालता कम करके मौन रखे, वचन में विवेक करे / परिणामों को संवृत करे, अशुभ में न जाने दे, शुभ में संलग्न रखे / ज्ञान वैराग्य के संस्कारों की वृद्धि करके आत्म परिणामों को परम पवित्र रखे और पाप का सदा वर्जन करे / इस प्रकार साधुत्व भाव का सम्यक् पालन करे / . इस सूत्र के आठवें अध्ययन में अंतिम एक चिकित्सा बताते हुए कहा गया है कि किसी भी प्रकार से सुरक्षा कर सकना असंभव सा हो जाय तो ब्रह्मचर्य भंग न करने के आगम आदेश परिणामों से भावित अंत:करण युक्त होकर फाँसी आदि कोई भी योग्य विधि से अपना जीवन समाप्त करना भी स्वीकार कर ले / किंतु स्त्री सेवनकुशील सेवन में अपनी आत्मा को कदापि न लगावे / तवस्सिणो हु तं सेयं, जं एगे विहमाइए, तत्थावि तस्स काल परियाए, से वि तत्थ विअंतिकारए / ऐसा करने पर मृत्यु प्राप्त हो जाय तो भी वह आराधक है, कर्मों का अंत करने वाला होता है / निबंध-१६ . ... मन एव मनुष्याणां कारण बंधमोक्षयो इस अध्ययन के दूसरे उद्देशे में कहा गया है कि- से सुयं च मे, ' अज्झत्थियं च मे, बंध पमोक्खो अज्झत्थेव- मैंने सर्वज्ञों से श्रवण करके, विचारणा और अनुभव करके भी समझा है कि जीवों के कर्मों का बंध और उनका क्षय आत्मपरिणामों से, विचारों से ही होता ह / आत्म परिणाम सूक्ष्म दृष्टि है और स्थूल दृष्टि से उसे ही चिंतन, मनन कहा जाता है / चिंतन मनन मनरूप साधन से होता है। शुभाशुभ आत्म परिणाम एकेन्द्रिय आदि सभी जीवों के होते हैं /