________________ आगन निबंधमाला उत्तर- ऐसी परिस्थिति में अनाचार सेवन-कुशील सेवन कदापि नहीं करना चाहिये / किंतु चल-विचल परिणामों की चिकित्सा इस विधि से करना प्रारंभ कर देना चाहिये-उबाहिज्जमाणे गाम धम्मेहिं इन्द्रिय स्वभाव से प्रबल बाधित हो जाने पर, प्रबल रूप से काय परिचारणा हेतु पीडित हो जाने की स्थिति उपस्थित हो जाने पर अर्थात् चित्त की आकुलता व्याकुलता कुशील सेवन के लिये अंत:करण को उत्प्रेरित करने लग जाय तो साधक को विलम्ब किये बिना योग्य चिकित्सा का तत्काल निर्णय लेकर उसे कार्यान्वित कर देना चाहिये / 1. अवि णिब्बलासए भोजन पदार्थों में अत्यंत सामान्य पदार्थ ही ग्रहण करे / समस्त मनोज्ञ स्वादिष्ट विशिष्ट पदार्थों का त्याग कर अल्प द्रव्यों से ही आहार पूर्ण करे / 2. अवि ओमोयरियं कुज्जा-अत्यंत जरूरी होने पर बहुत कम भोजन करके चला देवे, अत्यधिक उणोदरी करे! . 3. अवि उड्ढे ठाणं ठाएज्जा=यदि और आवश्यकता हो तो निरंतर अधिक से अधिक खडा रहे, किंतु बैठे या सोवे नहीं। 4. अवि गामाणुगामं दूइजेज्जा-अथवा तो ग्रामानुग्राम विहार कर देवे / 5. अवि आहारं वोच्छिंदेज्जा अथवा तो आहार.का संपूर्ण त्याग रूप तपस्या प्रारंभ कर दे या आजीवन अनशन कर लेवे / 6. अवि चए इत्थीसु मणं किसी भी प्रकार से, जिस तरह भी संभव हो स्त्री के सेवन से मन को निवृत्त कर लेवे / __ स्त्री संसर्ग-विषय सेवन में कभी तो कल्पित सुख से पहले दुःख होता है और कभी कल्पित सुख के बाद दु:खों का सामना करना पडता है। इस प्रकार ये स्त्री सुख आत्मा के लिये महान अशांति और कर्म बंध की वृद्धि कराने वाले हैं क्यों कि इसमें मोह के उदय से तीव्र आसक्ति और अविवेक प्रमुख बन जाता है / अतः आत्म साधकों को भलीभाँति विचार कर भावी दु:खद परिणामों को जानकर विषय सेवन नहीं करने में ही आत्मा को अनुशासित करने में सफल रहना चाहिये / विवेक युक्त कोई भी निर्णय लेकर अनाचार से आत्मा की सुरक्षा कर लेनी चाहिये / इस संबंधी मूल पाठ इस प्रकार हैपुव्वं दंडा पच्छा फासा, पुव्वं फासा पच्छा दंडा / इच्चेते कलहा संगकरा भवंति / तं पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवणाए / -