Book Title: Agam Nimbandhmala Part 03
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 191
________________ आगम निबंधमाला गणधरों ने नमस्कार मंत्र की रचना आवश्यक सूत्र में पूर्ण रूप से दो श्लोकों में करी है जो आवश्यक सूत्र की प्राचीन व्याख्या-भाष्य, नियुक्ति में स्वीकारा गया है और टीका प्रत में आवश्यक सूत्र के प्रथम आवश्यक में पूरा नमस्कार मंत्र प्रथम सूत्र रूप में स्वीकार कर उसकी व्याख्या की है तदनन्तर दूसरा पाठ 'करेमि भंते' स्वीकारा है। वास्तव में गणधर प्रभू आगम रचना आवश्यक सूत्र से ही प्रारंभ करते हैं अर्थात् आवश्यक सूत्र की अंगसूत्रों से भी प्राथमिकता है यह भी आगम पाठों से सुस्पष्ट है / क्यों कि अणगारों के अध्ययन वर्णन के वाक्य में 'सामायिक आदि (छ अध्यायमय आवश्यक सूत्र) सहित ग्यारह अंगो का अध्ययन किया' ऐसा पाठ आता है / इस प्रकार गणधर भगवंतो द्वारा नमस्कार मंत्र को आवश्यक सूत्र के प्रारंभ में रखा होने से फिर आचारांग आदि किसी भी सूत्र में उन्हें रखना आवश्यक नहीं होता है / भगवतीसूत्र के पहले भी चार अंगशास्त्र है, भगवती सत्र पाँचवाँ अंगसत्र है। प्रथम आचारांग सूत्र में पुनः नमस्कार मंत्र पूरा या अधूरा(पंचपरमेष्टी नमस्कार) रखना आवश्यक नहीं हुआ उसके बाद के (2) सूयगडांग (3) ठाणांग (4) समवायांग सूत्र में भी नमस्कार मंत्र या कोई मंगल शब्द नहीं रखा, इसी तरह छठे आदि अंगसूत्र ज्ञाता, उपासकदशा आदि में भी कोई मंगल शब्द या नमस्कार मंत्र नहीं रखा तो इस अकेले भगवती सूत्र के प्रारंभ में गणधरों को अधरा नमस्कार मंत्र रखने का कोई कारण नहीं हो सकता / जिस तरह दूसरे शतक से आगे के सभी शतक गाथा से ही प्रारंभ होते हैं वैसे ही यह प्रथम शतक भी गणधरों ने गाथा से ही प्रारंभ किया है ऐसा स्वीकारना न्यायपूर्ण होता है / इसी विचारणा अनुसार भगवती सूत्र में आये मध्य मंगल पद भी (गोशालक शतक आदि में) गणधर कृत नहीं समझकर लेखनकर्ता के समझ लेने चाहिये / सार भूत तात्पर्य यह हुआ कि आवश्यक सूत्र में तो नमस्कार मंत्र उस प्रथम अध्ययन का प्रथम सूत्र पाठ ही है / जो दो श्लोकमय पूर्ण पाठ है। अन्य आचारांग आदि किसी भी शास्त्र में मंगल रूप अधूरे नमस्कार मंत्र का एक श्लोक या अन्य मंगल पद कुछ भी | 191]

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