Book Title: Agam Nimbandhmala Part 03
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 216
________________ आगम निबंधमाला मनुष्य में- तिर्यंच पंचेन्द्रिय के समान है। विशेषता- धन संपत्ति, सोना, चाँदी आदि, खाद्यसामग्री, व्यापार, कारखाने आदि सभी प्रकार का परिग्रह तिर्यंच पंचेन्द्रिय से विशेष एवं स्पष्ट रूप से होता है / यो 24 ही दंडक में परिग्रह संज्ञा मानी गई है किसी में स्थूल दृष्टि से एवं किसी में सूक्ष्म-सूक्ष्मतम दृष्टि से परिग्रह संज्ञा समझी जा सकती है। निबंध-११७ भ.महावीर द्वारा पार्श्व प्रभु के नाम से निरूपण ___घटना उस समय को है जब गौशालक भी 24 वें तीर्थंकर के नाम से विचरण कर रहा था। पार्श्व प्रभु के शासन के कुछ स्थविर अपने यथायोग्य संघाडे से विचरण कर रहे थे। उन्होंने दो-दो २४वें तीर्थंकर के विचरने की बात जानी। एक बार कोई नगरी में भगवान महावीर स्वामी के विराजने की. जानकारी हुई / उन्हें संदेह था कि कौन तीर्थंकर सही है ? वे किसी समय भगवान के समीप में पहुँच कर वंदन व्यवहार किये बिना ही खडे होकर सीधे ही भगवान से प्रश्न करने लगे। भगवान तो सर्वज्ञ थे उन्हें तो ऐसे व्यवहार से कोई नवाई नहीं होती थी। प्रश्न भी परीक्षात्मक था, जिज्ञासा से नहीं था इसलिये सरल बात भी चक्कर देकर पूछी थी- भंते ! क्या, असंख्य लोक में अनंत रात-दिन बीते हैं बीतेंगे, हुए हैं होंगे और परित्त रातदिन भी बीते हैं बीतेंगे? . स्थविरों के अंतर आशय को समझकर प्रभू ने लोक का स्वरूप पार्श्वनाथ भगवान के नाम से निरूपित किया कि- पार्श्वनाथ पुरुषादानीय अहँत भगवंत ने शाश्वत अनादि अनवदग्र लोक कहा है। क्षेत्र से परिमित गोलाकार लोक कहा है, जो नीचे विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और उपर विशाल है, नीचे पल्यंक संस्थान, मध्य में श्रेष्ठ वज्राकार, उपर खडी मृदंगाकार है / उसमें अनंत जीव भी उत्पन्न होते हैं, मरते हैं; परित्त जीव भी उन्पन्न होते हैं, मरते हैं / जीवों, अजीवों से पहचाना जाता यह लोक है। अनंत जीवों पर दिनरात बीतते हैं और परित्त जीवों पर भी दिन-रात बीतते हैं और लोक | 216

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