Book Title: Agam Nimbandhmala Part 03
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 225
________________ आगम निबंधमाला वैमानिक में गमनागमन करने वाले देवों की उत्कृष्ट 22 सागरोपम की स्थिति होती है। देवों की वैक्रिय शक्ति, ऋद्धि उनकी स्थिति के अनुसार हीनाधिक होती है। अत: दस हजार वर्ष आदि स्थिति वाले व्यंतर देवों की क्षमता कम होती है और क्रमश: एक पल्योपम की स्थिति वाले व्यंतर देवों की क्षमता अधिक होती है। उसी तरह भवनपति असुरकुमारों में भी दसहजार वर्ष से पल्योपम एवं एक सागरोपम तक की स्थिति होती है। वैमानिक में एक पल्योपम से दो सागरोपम यावत् 22 सागरोपम तक की स्थिति बारहवें देवलोक तक होती है तदनुसार ही इन देवों में गमनागमन क्षमता एवं ऋद्धि की भिन्नता होती है / प्रस्तुत में असुरकुमारों, नवनिकायों एवं वैमानिकों की जो उपर नीचे जाने की क्षमता दर्शाई गई है. वह उत्कृष्ट स्थिति, ऋद्धि की अपेक्षा से कही गई है / उसे उस जाति के अल्पर्धिक-महर्द्धिक सभी देवों के लिये स्थिति का विचार किये बिना मान लेना उचित्त नहीं होता है। . असुरकुमारों का नीचे तीसरी नरक तक जाना कहा है तो उसे उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वालों की अपेक्षा समझना चाहिये परंतु दस हजार वर्ष या एक पल्योपम अथवा 5-10 पल्योपम वालों को भी तीसरी नरक तक जाना मान लेना योग्य नहीं होता है। वैमानिक देवों का सातवीं नरक तक जाना कहा है तो सभी वैमानिकों को एक समान नहीं समझकर उनकी भिन्नता समझी जाती है अर्थात् पहले दूसरे देवलोक के देव सातवीं नरक तक नहीं जाते हैं वे तीसरी नरक तक जाते हैं, आगे क्रमशः बढते-बढते उपर-उपर के देव अगलीअगली नरक में जाते हैं। . नवनिकाय के देव दूसरी नरक तक जाते हैं तो वहाँ भी उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की अपेक्षा समझना। सभी स्थिति वाले नवनिकाय देव जावे ऐसा नहीं समझना / क्यों कि एक पल्योपम की स्थिति वाले व्यंतर पहली नरक तक ही जाते हैं / देवों की गति, ऋद्धि आदि स्थिति सापेक्ष ही होती है अत: एक पल्योपम से अधिक [225

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