________________ आगम निबंधमाला नीचे के 900 योजन के बाद अधोलोक का प्रारंभ होता है और उपर के 900 योजन के बाद उर्ध्वलोक का प्रारंभ होता है / पाँचों ज्योतिषी उपर 110 योजन क्षेत्र में है / 16 ही व्यंतर नीचे 800 योजन क्षेत्र में है / 10 जुंभक व्यंतर पर्वतों पर अर्थात् वैताढ्य एवं कंचनगिरि पर्वतों पर होने का वर्णन मिलता है। (3) ऊर्ध्वलोक- समभूमि से 900 योजन उपर जाने के बाद से ऊर्ध्व लोक प्रारंभ होकर 14 राजु प्रमाण लोक की उपरी सतह तक ऊर्ध्व लोक है। करीब डेढ राजु उपर जाने पर देवलोक का प्रारंभ होता है / सर्वप्रथम पहला-दूसरा देवलोक है / दोनों देवलोक का पृथ्वी तल एक ही है और वह पूर्ण चंद्राकार है, गोल है। दोनों देवलोकों का विभाजित क्षेत्र अर्धचन्द्राकार होता है / दक्षिणी विभाग में प्रथम देवलोक है और उत्तरी विभाग में दूसरा देवलोक है / इसी तरह वहाँ से कुछ(असंख्य योजन) उपर जाने.पर अर्थात् समभूमि से ढाई राजु उपर जाने पर तीसरा-चौथा देवलोक है जो पहले दूसरे देवलोक के समान ही एक ही पृथ्वीपिंड पर अर्ध चन्द्राकार विभाजन वाले हैं। उसके बाद क्रमश: असंख्य-असंख्य योजन उपर-उपर जाने पर पाँचवाँ, छट्ठा, सातवाँ और आठवाँ देवलोक क्रमशः पूर्ण चंद्राकार एक दूसरे की सीध में उपर है / उसके बाद कुछ(असंख्य योजन)उपर नौवाँ-दसवाँ देवलोक एक सतह पर दोनों अर्ध चंद्राकार है / फिर कुछ(असंख्य योजन) उपर जाने पर ११वाँ 12 वाँ देवलोक भी एक सतह पर दोनों अर्ध चंद्राकार क्षेत्र वाले हैं। उसके उपर कुछ(असंख्य योजन) दूर जाने पर पहली दूसरी तीसरी ग्रैवेयक भूमि एक दूसरे के उपर-उपर क्रमश: नजीक-नजीक पूर्ण चंद्राकार स्वतंत्र है / यह प्रथम ग्रैवेयक त्रिक है। उससे कुछ दूर उपर जाने पर द्वितीय ग्रैवेयक त्रिक इसी प्रकार है जो चौथी पाँचवीं छट्ठी ग्रैवेयक भूमि रूप है और आपस में नजीक- नजीक कम-कम ऊँचाई पर है। इसी प्रकार कुछ दूर(असंख्य योजन) उपर जाने पर तीसरी ग्रैवेयक त्रिक है जो सातवीं आठवों नौवों ग्रैवेयक भूमि रूप एक दूसरी से उपर उपर एवं नजीक नजीक है / इस तरह तीन त्रिक में नव ग्रैवेयक की नव पृथ्वियां प्रत्येक पूर्ण चन्द्राकार है.। . | 238