________________ आगम निबंधमाला किसी पर झूठा आक्षेप लगाते हैं तो उन्हें भी उसी प्रकार के आक्षेप लगने का फल शीघ्र मिलता है / निबंध-११६ श्रावक अनारंभी नहीं-सूक्ष्म अनुमोदन चालू आरंभ- कोई दंडक में अव्रत की अपेक्षा जीव आरंभ युक्त है और कोई साक्षात् छ काय जीवों की हिंसा करने से आरंभ युक्त है। कुल मिलाकर 24 ही दंडक के जीव आरंभी है, अनारंभी नहीं। मात्र मनुष्य में आरंभी भी है और अनारंभी भी है / अप्रमत्त संयत आदि उपर के गुणस्थानवर्ती मनुष्य अनारंभी होते हैं / छटे गुणस्थान के मनुष्य आरंभी-अनारंभी दोनों होते हैं / एक से पाँच गुणस्थान के सभी जीव आरंभी है, अनारंभी नहीं / अपेक्षा से पाँचवें गुणस्थान वाले क्वचित् आजीवन अनशनं आदि में अनारंभी हो सकते हैं, परन्तु उसे यहाँ गौण किया गया है तथा श्रावक के कुछ करण-योग पौषध में भी खुले होते हैं एवं संथारे में तीन करण तीन योग के प्रत्याख्यान होते हुए भी गृहस्थ सेवा परिचर्या करते हैं अतः गृहस्थ सहयोग खुला होने से पूर्णता की अपेक्षा अनारंभी नहीं कहा गया है / सूक्ष्म-अनुमोदन रूप आरंभ चालु रहने से वे अनारंभी नहीं होते हैं / परिग्रह- नारकी और एकेन्द्रिय में- शरीर, कर्म एवं सचित्त, अचित्त, मिश्र द्रव्यों का परिग्रह होता है / देवताओं में- शरीर, कर्म, भवन, विमान, देवदेवी, मनुष्य-मनुष्याणी, तिर्यंच-तिर्यंचाणी, आसन, शयन, भंडोपगरण एवं अन्य सचित्त अचित्त मिश्र द्रव्यों का परिग्रह होता है / विकलेन्द्रियों में- शरीर, कर्म और सचित्त अचित्त मिश्र द्रव्य तथा बाह्य भंडोपकरण, स्थान आदि का परिग्रह हो सकता है / . तिर्यंच पंचेंद्रियों में- शरीर, कर्म, सचित्त अचित्त मिश्र द्रव्य, जलीय स्थान-तालाब, नदी आदि / स्थलीय स्थान- पर्वत, ग्रामादि, वन उपवन आदि, घर मकान, दुकान आदि, खड्डे खाई कोट आदि, तिराहे चौराहे आदि, वाहन बर्तन आदि, देव देवी, मनुष्य मनुष्याणी, तिर्यंच तिर्यंचाणी, आसन, शयन, भंडोपकरण / 215