________________ आगम निबंधमाला था / पात्र के पहले खाने में आया आहार पथिकों को, दूसरे खाने का आहार कौवे-कुत्ते आदि को, तीसरे खाने में प्राप्त आहार जलचर मच्छ-कच्छ को देकर चौथे खाने में प्राप्त आहार से बेले-बेले निरंतर पारणा करता था / 12 वर्ष तक इस प्रकार तपस्या करके शरीर के अत्यधिक कृश हो जाने पर उसी नगर के बाहर पादपोपगमन संथारा धारण किया / एक महीने के संथारे से काल करके चमरचंचा राजधानी में चमरेंद्र रूप में उत्पन्न हुआ। ... . पर्याप्त होते ही स्वाभाविक अवधिज्ञान के उपयोग से उपर सीध में शक्रेन्द्र को देखा, अज्ञानवश कोपायमान हुआ और सामानिक देवों को संबोधन कर पूछा- यह मेरे उपर कौन बैठा है ? सामानिक देवों ने उसे जय-विजय के शब्दों से वधाया और कहा कि यह महान ऋद्धिसंपन्न प्रथम देवलोक का इन्द्र है / ऐसा सुनकर वह क्रोध मे अत्यधिक लाल-पीला हो गया। स्वयं ही शक्रेन्द्र की आशातना करने जाने का निर्णय किया। अवधिज्ञान से प्रभू महावीर को ध्यानस्थ देखा और सोचा कि भगवान की शरण लेकर जाना ही उचित होगा / अपनी शय्या से उठकर खडा हुआ देवदूष्य वस्त्र का परिधान करके शस्त्रागार से परिघरत्न नामक शस्त्र लेकर अकेला ही चमरचंचा राजधानी से निकला, निकलकर तिरछालोक में अपने उत्पात पर्वत पर आकर वैक्रिय रूप बनाकर सुसुमार नगर के बाहर उद्यान में जहाँ पर भगवान अट्टम भक्त युक्त १२वीं भिक्षुपडिमा धारण किये हुए ध्यानस्थ खडे थे वहाँ पर आया और भगवान को वंदन नमस्कार करके इस प्रकार बोला कि हे भगवन! मैं आपकी निश्रा लेकर शक्रेन्द्र की आशातना करने जा रहा हूँ। ऐसा बोलकर वहाँ से उत्तरपूर्व में कुछ दूर जाकर आकाश में एक लाख योजन का विकराल शरीर बनाया और ज्योतिषी विमानों को इधर उधर हटाता हुआ, आतंक मचाता हुआ प्रथम देवलोक की सुधर्मा सभा तक पहुँच गया / देवलोक की इन्द्र कील को अपने परिघरत्न शस्त्र से प्रताडित करके इस प्रकार बोला- कहाँ है शक्रेन्द्र ? कहाँ है उसके सामानिक देव ? कहाँ है उसके आत्मरक्षक देव और कहाँ है उसकी अप्सराएँ ? आज में शक्रेन्द्र का हनन करूंगा और सब को मेरे वश में अधीनस्थ करुंगा, ऐसा बोलते हुए वह शक्रेन्द्र को अत्यंत अनिष्ट, / 208