________________ आगम निबंधमाला निबंध-२१ .'जामा तिण्णि उदाहिया' का अर्थ अनेकातिक इस अध्ययन के प्रथम उद्देशक में निम्न सूत्र में सिद्धांत की अनेकांतिकता आचार के रूप में बताइ गई है, जिसे महान विवेक भी कहा गया है। एस महं विवेगे वियाहिए- गामे अदुवा रण्णे, णेव गामे, णेव रण्णे धम्मं / जामा तिण्णि उदाहिया, जेसु इमे आयरिया संबुज्झमाणा समुट्ठिया / संयम और तप साधना ग्राम में अथवा वन में कहीं भी हो सकती है / एकांतरूप से वन में ही हो, ऐसा आग्रह .या एकांत कथन नहीं होना चाहिये / यदि भावों की शुद्धि, पवित्रता, विवेक और आत्म निग्रह में सावधानी है, तो उभयत्र साधना शक्य है। यदि स्वयं की सावधानी, विवेक और भावों की पवित्रता नहीं है, तो गाँव में रहो चाहे जंगल में, कहीं भी संयम की सफलता नहीं हो सकती। यह अनेकांतदर्शन है। - बाल, युवान और वृद्ध ये जीवन की तीन अवस्थाएँ है / इनमें से किसी भी अवस्था में बोध पाकर संन्यास, संयम ग्रहण किया जा सकता है। सावधानी प्रबल हो तो किसी भी अवस्था में संयम की सफलता मिल सकती है। किंतु ऐसा कोई एकांत नियम नहीं किया जा सकता कि 'वृद्धावस्था में ही संन्यास-संयम ग्रहण करना चाहिये और बाल वय में या जवानी में दीक्षा नहीं लेना' / जैनागम ऐसे एकांतिक निर्देश नहीं करके वैकल्पिक विधान करते हैं / तीनों वयों के साधक साधना का सुअवसर पाकर सफल साधना कर सकते हैं और विवेक और सावधानियों की कमी होने के कारण कोई भी अवस्था में दीक्षित साधक साधना में असफल हो जाता है। मान, सम्मान, विषय, कषाय में डूब सकता है / अत: वय का भी आग्रह जैनागम नहीं स्वीकारते, किंतु, निर्णय का विवेक और सावधानी का विवेक रखने की सर्वत्र प्रेरणा की जाती हैं। निबंध-२२ वस्त्र धोना, रंगना क्या वस्त्र संबंधी विशिष्ट अभिग्रह धारण करने वाले सूत्रोक्त उन / 45