________________ आगम निबंधमाला पृथ्वी में कंपन होना भूकम्प कहलाता है / वह भूकम्प दो प्रकार का कहा गया है- (1) चराचर जगत्पृथ्वी के किसी एक या अनेक विभागों में कंपन होना यह एक देश भूकम्प है। (2) समस्त ज्ञात दुनिया में अर्थात् संपूर्ण विश्व में एक साथ कंपन होना, सर्व भूकंप कहलाता है। तीन की संख्या का प्रकरण होने से दोनों प्रकार के भूकंप के तीन-तीन कारण यहाँ दर्शाये गये हैं। देश भूकंप के तीन कारण- (1) पुद्गल परिणमन संबंधी-हमारी यह पृथ्वी रत्नप्रभा पृथ्वी है / अहे रयणप्पभा का अर्थ है- रत्नप्रभा पृथ्वी में / शास्त्रों में अहे शब्द अनेक जगह 'में' अर्थ रूप में प्रयुक्त होता है / यथा- अहे आरामंसि वा-बगीचे में / अत: इस रत्नप्रभा नामक हमारी पृथ्वी में स्वाभाविक पुद्गल परिणमन में विशाल पुद्गल स्कंध के क्षीण हो जाने से, नष्ट हो जाने से वहाँ भूमि के अंदर पोलार हो जाने से उथल-पुथल होता है, उसका असर पृथ्वी के उपरी भाग में रहे ग्राम, नगर आदि में दिखाई देता है। (2) तिर्यंच संबंधी- असन्नि तिर्यंच पंचेन्द्रिय में उरपरिसर्प जाति के महोरग नामक सर्प विशालकाय(अनेक योजन) के भी होते हैं। वे जन्म धारण कर अंतर्मुहूर्त में ही मृत्युको प्राप्त करते हैं / तब उनके शरीर के पुद्गल तत्काल क्षीण हो जाते हैं। जिससे भूमि में पोलार(स्पेश) बन जाता है। उपर रही पृथ्वी का वजन उस पोलार वाली भूमि पर आता है, जिससे उस क्षेत्र में उथल-पुथल होता है। इस तरह तिर्यंच उरपरिसर्प की क्षणिक जन्म मृत्यु और विनाश के निमित्त से हमें भूमिकम्प का अनुभव होता है। (3) देवों से संबंधी-नवनिकाय के देव असुरकुमार जाति के देव हैं, वे परस्पर किसी निमित्त से पृथ्वी को रणभूमि बनाकर संग्राम करे और संग्राम में बारंबार भूमि पर प्रहार करे तो एक देश से पृथ्वी का कंपन होता है / इस प्रकार यह देव निमित्तक देश भूकंप है / सर्व भूकंप के तीन कारण- (1) जिस तरह पाताल कलशों में वायु क्षुभित होने से लवण समुद्र में पानी ऊँचे उछलता है, वैसे ही रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे रही घनवाय के क्षुभित होने पर उसका असर क्रमश: घनोदधि में और फिर पृथ्वी में आता है जिससे संपूर्ण रत्नप्रभा पृथ्वी कंपित होती है। उससे संपूर्ण विश्व में एक साथ भूकंप आता है / (2) | 119]