________________ आगम निबंधमाला .. गुणों-साधनाओंसे परिपूर्ण व्यक्ति के द्वारा कहा गया उपदेशसुआख्यातसही वस्तु तत्त्व को बताने वाला सन्मार्गदायक होता है / तीर्थंकर भगवान ऐसा सुअधीत, सुध्यात और सुतपस्वित धर्मका सुंदर आख्यान, कथन, विवेचन करते हैं / तात्पर्य स्पष्ट है कि उपदेशक का जीवन अध्ययन, चिंतन-मनन युक्त एवं तप-संयममय होना ही चाहिये। इस प्रकार इस सूत्र में सकारात्मक विधान के साथ प्रश्नगत उक्ति का समर्थन होता है कि 'दिया तले अंधेरा' के समान उपदेशक नहीं होना चाहिये / पहले स्वयं के जीवन को पूर्ण आदर्श जीवन रूप में घडना चाहिये, फिर उपदेशक बनना चाहिये / निबंध-६४ मोक्षप्राप्ति में तप एवं क्रिया का मापदंड जिस तरह संसार व्यवहार में करोडपति शेठ बनने के लिये किसी व्यापार या वर्ष आदि समय का अथवा परिश्रम का कोई मापदंड निर्धारित नहीं किया जा सकता है। क्यों कि कोई व्यक्ति अल्प प्रयत्न और अल्प समय में मालो-माल हो जाता है और कोई अत्यधिक प्रयत्न, रात दिन करने पर भी वर्षों तक करोडपति शेठ नहीं बन सकता है। इसके पीछे अनेक कारण रहे हुए होते हैं। उनमें मुख्य कारण ये है- पूर्वभव के कर्मसंग्रह तथा वर्तमान सुसंयोग और समय पर योग्य पुरुषार्थ / ' ठीक इसी तरह मोक्ष साधना में भी प्रत्येक व्यक्ति के लिये तप और संयम की मात्रा का कोई निर्धारण नहीं कहा जा सकता। जीव के अपने पूर्वभवों की परंपरा और कर्मस्टोक विभिन्न तरह के होते हैं / इसी बात को स्पष्ट करते हुए यहाँ पर चार प्रकार के मोक्षाराधक साधकों के दृष्टांत के साथ मोक्षसाधना के तप संयम की भिन्नता स्पष्ट की गई है- (1) कम समय और कमतप-संयम से मुक्ति / यथा-मरुदेवी माता। भगवान ऋषभदेवकी माता मरुदेवी को अल्प समय में संयमतप की उग्र साधना के बिना अंतर्मुहूर्त की ध्यान पराकाष्टा से ही मुक्ति प्राप्त हो गई / (2) लंबे समय से किंतु उग्र तपश्चर्या के बिना मुक्ति / यथाभरत चक्रवर्ती को अंतर्मुहूर्त के चिंतन ध्यान मात्र से केवलज्ञान की प्राप्ति और फिर दीर्घसंयम पर्याय में(१लाख पूर्व १लाख 84000004 | 124