________________ आगम निबंधमाला 1. पुण्यानुबंधी पुण्य 2. पुण्यानुबंधी पाप 3. पापानुबंधी पुण्य और 4. पापानुबंधी पाप इन चार विकल्पों की निष्पत्ति भी यहाँ के इन उपरोक्त विकल्पों से होती है / जीव महारंभी महापरिग्रही भी पुण्योदय से होता है किंतु उसी अवस्था में लीन रहने पर नरक गति का भागी बनता है तो वह पुण्य भी पापानुबंधी पुण्य कहा जाता है। इस प्रकार अन्य विकल्प भी समझ लेने चाहिये। निबंध-७१ अवधिज्ञान की उत्पत्ति एवं विनाश कैसे ? छद्मस्थों का ज्ञान क्षायिक नहीं होता किंतु क्षायोपशमिक ज्ञान होता है तो अवधिज्ञान भी क्षायोपशमिक ज्ञान है / क्षयोपशम की विविध मर्यादाएँ होती है जैसें रटा हुआ श्रुतज्ञान सुबह याद किया शाम को विस्मृत हो जाता है। कोई ठीक याद किया है और पुनरावर्तन नहीं किया तो 2, 4 या 10 दिन में भी विस्मृत या विकृत हो जाता है। मिथ्यात्व आदि विशेष पाप प्रकृतियों के उदय से, परिणामों की कलुषता वगैरह से भी क्षायोपशमिक ज्ञान देश या सर्व से विनष्ट हो सकता है। ऐसे ही कुछ कारणों से यहाँ अवधिज्ञान के तत्काल विनष्ट होने का निरूपण किया गया है / जिसमें व्यक्ति की गंभीरता की कमी और कुतूहल मानसता के मुख्य कारण दर्शाये हैं- (1) साधक अवधिज्ञान के माध्यम से विशाल पृथ्वी, द्वीप-समुद्र भी देख सकता है जिसमें चौतरफ अपनी कल्पना से अत्यधिक जल,जलाशय,नदियाँ, समुद्र देखकर आश्चर्यान्वित, अत्यधिक आश्चर्यान्वित या भयभीत हो जाता है तो उसका उत्पन्न हुआ वह अवधिज्ञान तत्काल नष्ट हो जाता है। उसी तरह (2) सूर्योदय-सूर्यास्त के समय या चातुर्मास काल में इस पृथ्वी को जिधर देखो उधर जिस रंग की पृथ्वी होती है उसी रंग के छोटे छोटे संख्यात-असंख्यात कुंथुए, कुंथुओं की राशि कल्पनातीत रूप से देखकर आश्चर्यान्वित आदि होने से / (3) बहुत बडे-बडे सर्प, अजगर 1,2,5 या 25 कि.मी. जितने लंबे देखकर कुतूहल में आ जाने से या भयभीत हो जाने से / (4) महर्द्धिक, महासुखी, देवों की महान ऋद्धि को देखकर विस्मित आश्चर्यान्वित हो जाने से / (5) इस जमीन के अंदर अमाप कल्पनातीत धन, संपत्ति, [143]