Book Title: Agam Nimbandhmala Part 03
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 184
________________ आगम निबंधमाला बीस दिन (17) दो मास पच्चीस दिन (18) तीन मास (19) तीन मास पाँच दिन (20) तीन मास दस दिन (21) तीन मास पंद्रह दिन (22) तीन मास बीस दिन (23) तीन मास पच्चीस दिन (24) चार मास / (25) लघु(अल्पतम) (26) गुरू (महत्तर) (27) संपूर्ण प्रायश्चित्त आरोपणा (28) कुछ कम प्रायश्चित्त आरोपणा (रियायत) यथा- एक मास की 15 दिन आरोपणा और दो मास की बीस दिन आरोपणा। निबंध-९४ 17 प्रकार के मरण शास्त्रों में अनेक जगह विभिन्न अपेक्षा से मरण के प्रकार कहे गये हैं / यहाँ सत्रहवें समवाय में उन्हें मिलाकर अपेक्षा से 17 प्रकार के मरण का एक साथ कथन है, यथा- (1) आवीचि मरणप्रतिक्षण आयुष्य कर्म दलिक उदय में आकर क्षय होते हैं यह देश आयुक्षय रूप निरंतर मरण ही आवीचिमरण कहा गया है / (2) अवधि मरण- कुछ काल के लिये मरकर कालांतर से उसी योनि में पुनः जन्म-मरण करना है तो उसे अवधि मरण कहा गया है / (3) आत्यंतिक मरण- भविष्य में उस आयुष्य को कभी प्राप्त नहीं करने रूप मरण अर्थात् मोक्षपर्यंत जहाँ पुनः जन्म-मरण नहीं करना है तो वह आत्यंतिक मरण है / (4) वलय मरण- गले को दबाकर या मोडकर मरने या मारने को वलय मरण कहते हैं / संयम छोडकर या व्रती जीवन का त्याग कर अव्रत में मरण, यह भाववलय मरण है / (5) वशात मरण- कोई वस्तु की या इन्द्रिय विषय की आसक्ति के कारण, उसकी अप्राप्ति से दु:खी होकर आर्तध्यान में मरना / कोई व्यक्ति के मोह में उसके मरने के पीछे दु:खी होकर मरना, ये वशार्त मरण कहे गये हैं / (6) अंतोशल्य मरण- भाला, तलवार आदि शस्त्र से मरना / अथवा माया, निदान, मिथ्यादर्शन रूप शल्य युक्त मरना या व्रत के दोषों की आलोचना प्रायश्चित्त किये बिना मरना, ये सभी अंतोशल्य मरण कहे गये हैं। (7) तद्भव मरण- जो जैसा पशु या मानव रूप में है, मरकर वैसाही बन जाय उसी योनि- गति पर्याय में उत्पन्न होवे उस मरण को तद्भव मरण कहा गया है / यह मरण / 184

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