________________ आगम निबंधमाला (25) व्युत्सर्ग- शरीर, भक्तपान, उपधि तथा कषाय का विसर्जन। (26) अप्रमाद- प्रमाद का वर्जन, अप्रमत्त भाव का अभ्यास / (27) लवालव- समाचारी के पालन में सतत जागरूक रहना / (28) ध्यानसंवरयोग- ध्यान, संवर, अक्रियता की वृद्धि करना / (29) मारणांतिक उदय- मारणांतिक वेदना में क्षुब्ध न होना,शांत और प्रसन्न रहना / (30) संगपरिज्ञा-आसक्ति का त्याग। शरीर, उपकरण, शिष्यादि में अनासक्त भाव का अभ्यास / (31) प्रायश्चित्तकरण- दोषों की विशुद्धि करना, विशुद्धि में लियेहुए प्रायश्चित्तकाअनुष्ठान करना। (३२)मारणांतिक आराधना- मृत्युकाल में आराधना करना / संलेखना संथारा करने के संस्कारों को दृढ करना। निबंध-९३ 28 आचार कल्प इस शब्द के विविध अर्थ हैं- (1) आचार संबंधी विशेष कल्प अर्थात् नियम, उपनियम, मर्यादाओं का वर्णन करने वाला शास्त्र'आचारांग सूत्र' / (2) आचार और प्रायश्चित्त का कथन करने वाला 'निशीथ अध्ययन सहित आचारांग सूत्र' / (3) आचारांग सूत्र का प्रकल्प अर्थात् निकालकर अलग किया हुआ अध्ययन विभाग रूप 'निशीथ सूत्र' / (4) आचार अर्थात् संयमाचरण में लगे दोषों का प्रकल्प अर्थात् प्रायश्चित्त विकल्प। इन चार अर्थों में से प्रथम के दो अर्थ से 28 आचार प्रकल्प अध्ययन रूप होते है- आचारांग सूत्र के क्रमश: 23 अध्ययन+निशीथ के 5 अध्ययन- लघु, गुरुमासिक, लघु, गुरुचौमासिक, आरोपणा / अथवा क्रमशः 25 अध्ययन+निशीथ के तीन अध्ययनं लघु, गुरु, आरोपणा। चतुर्थ अर्थ से 28 प्रकार के आरोपणा प्रायश्चित्त स्थान है, यथा-(१) पाँच दिन का प्रायश्चित्त (2) दस दिन का (3) पंद्रह दिन का (4) बीस दिन का (5) पच्चीस दिन का (6) एक मास का (7) एक मास पाँच दिन (8) एक मास दस दिन (9) एक मास 15 दिन (10) एक मास बीस दिन (11) एक मास पच्चीस दिन (12) दो मास (13) दो मास पाँच दिन (14) दो मास दस दिन (15) दो मास पंद्रह दिन (16) दो मास / 183