________________ आगम निबंधमाला आवरण नहीं होता है / इसलिये इसके साथ आवरण शब्द नहीं जोडना चाहिये किंतु अप्रत्याख्यानी कषाय इतना ही बोलना चाहिये। (3) प्रत्याख्यानावरण कषाय- पूर्व के दो कषायों से इस कषाय की तीव्रता कम होती है / इस कषाय में पकड 15 दिन से ज्यादा नहीं होती है / इस कषाय के उदय में जीव को पाँच गुणस्थान हो सकते हैं / यह कषाय सर्वविरति रूप संयम का बाधक है / किंतु देशविरति के प्रत्याख्यान इस कषाय के उदय में प्राप्त हो सकते हैं / इसलिये यह कषाय सर्वप्रत्याख्यान का आवरण करता है, देश प्रत्याख्यान का नहीं। इस कषाय का उदय होने पर उपर के छठे आदि गुणस्थान हो तो भी छूट जाते हैं और वह जीव पाँचवें आदि नीचे के गुणस्थानों में आ जाता है / इस कषाय में आयुबंध हो तो मनुष्य गति की प्राप्ति होती है / परिणामों में परिवर्तन आकर प्रगति करे तो इस कषाय वाला जीव भी मोक्ष प्राप्त कर सकता है / तथापि स्वभाव से इस कषाय की स्थिति उत्कृष्ट 15 दिन की हो सकती है / इसको दृष्टांत से इस प्रकार समझाया है- बालु रेत में पड़ी लकीर हवा आदि से दो-चार दिन में समाप्त हो जाती है वेसे ही इस प्रत्याख्यानावरण कषाय का क्रोध 2-4 दिन यावत् उत्कृष्ट 15 दिन में समाप्त हो जाता है। समाप्त न होवे तो उपर के अन्य किसी कषाय में परिणत हो जाता है। लकडी को मोडने पर थोडा सा बल लगाने पर भी वह मुड जाती है वैसे ही इस कषाय के मान वाले में कुछ समय व्यतीत होने पर नम्रता हो जाती है। बैल चलते-चलते मूत्र करता है तब भूमि पर उसके मूत्र का आकार वक्रता वाला होता है, वह भी थोडे समय बाद सूखने पर या अन्य गमनागमन आदि से समाप्त हो जाता है; वैसे ही इस प्रत्याख्यानावरण कषाय वाले की माया भी अल्प समय से सरलता में परिवर्तित हो जाती है / अंजन या काजल का रंग शीघ्र साफ हो जाता है वैसे ही इस कषायोदय का लोभ मानस भी सरलता से परिवर्तित हो जाता है। यह कषाय दुर्गतिदायक नहीं है, फिर भी मोक्ष मार्ग की प्रगति में संयम प्राप्ति में बाधक बनता है। (4) संज्वलन कषाय- यह कषाय मंदतम होता है इसमें पकड का / 128