________________ आगम निबंधमाला और जरूरी परिस्थिति से ऐसी मोटी संखडी में जाना पडे तो दो कोष से अधिक दूर अर्थात् सात किलोमीटर से आगे हो तो वहाँ गोचरी नहीं जाना किंतु सात कि.मी. के भीतर हो तो जनाकुलता का समय जब न हो तो जा सकते है / यह अनेक गांवों की, अनेक दिनों की, चलने वाली संखडी की अपेक्षा है / सामान्यतया किसी भी छोटे बडे जीमणवार में आसक्ति परिणामों से जाना निषिद्ध है। किसी के घर व्यक्तिगत कोई भी महोत्सव हो, अठाई अर्थात् अठवाडिये के तप का उजमणा(समाप्ति उत्सव) हो, अन्य भी किसी भी प्रकार के ऋतु परिवर्तन आदि का महोत्सव हो उसमें अन्य श्रमण, ब्राह्मण आदि को भी भोजन दिया जाता हो तो वहाँ अनासक्ति से और आवश्यकता से साधु गोचरी जा सकता है जब कि लोगों की भीड नहीं हुई हो या समाप्त हो चुकी हो / ग्राम, नगर आदि का कोई महोत्सव हो, मेला या यक्ष महोत्सव आदि हों, वहाँ पर जो भी भोजनशाला आदि होती है, उसमें भी उपरोक्त प्रकार से भिक्षु यथाप्रसंग विवेक के साथ गोचरी जा सकता है / यह निष्कर्ष इस अध्ययन के दूसरे तीसरे चौथे उद्देशक से प्राप्त होता है / चौथे उद्देशक अनुसार वर-वधू के घर शादी के पहेले या शादी के बाद के भोजन आदि प्रसंगों में भी उपरोक्त विधि से जाया जा सकता है / इन तीनों उद्देशकों में निषेध और विधान दोनों है / अतः अपेक्षा बताकर यहाँ उभयमुखी स्पष्टीकरण किया है। उत्तराध्ययन सूत्र के प्रथम अध्ययन के अनुसार जहाँ साधु को . गृहस्थों की पंक्ति में खडा होना पडे वहाँ जाने का निषेध किया है / तात्पर्य यह है (1) दीनता न हो, पूर्ण सम्मान रहे (2) किसी को अंतराय न हो (3) धर्म की लघुता न हो (4) आसक्ति के भाव न हो (5) पंक्ति (पंगत) में खडा रहना न पडे और (6) भीड जनाकुलता न हो, ऐसे समय और ऐसे स्थान में विवेक के साथ साधु-साध्वी आवश्यक होने पर गोचरी जा सकते हैं / .. यदि भिक्षु ऐसे स्थानों में गोचरी न जावे तो श्रेष्ठ ही है / कोई भी त्याग बढाना, अभिग्रह बढाना भी श्रेष्ठ है। किंतु आगम निरपेक्ष