________________ आगम निबंधमाला कंदमूल में अनंत जीवों की विराधना है, फिर भी एकेन्द्रिय जीव है / वनस्पति जीव है / इन्हें पंचेन्द्रिय के मांस भक्षण के समान तो नहीं कहा जा सकता / मांस भक्षण नरक में जाने का कारण बताया है / किंतु कंदमूल रूप एकेन्द्रिय के आहार को ऐसा नहीं कहा जा सकता / अतः जैन साधु के गोचरी के कुलों में घरों मे किसी देश प्रांत में कई खाद्य पदार्थों में लहसुन डाला जाता है / कोई प्रांतों में अदरक और हल्दी का बहुलता से उपयोग होता है। ऐसे क्षेत्रो में ये चीजें अचित रूप में साधु की गोचरी में आ जाना पूर्ण संभव रहता है / __दूसरी बात यह है कि औषध रूप में, स्वास्थ्य के किसी कारण से भी लहसुन का उपयोग फायदेमंद माना जाता है / इत्यादि कारणों से अचित्त लहसुन और अचित्त कंदमूल साधु के लिये एकांतिक मद्यमांस जितना निषिद्ध आगमों में नहीं है / फिर भी भगवती सूत्र के गोशालक उपासकों के कथन से प्रभ महावीर ने अपने श्रावकों को कंदमूल के त्यागी बनने की प्रेरणा दी है / उसी को लक्ष्य में रखकर विधि मार्ग से, राजमार्ग से, साधु और श्रावकों को लहसुन, हल्दी, अदरक, आलू आदि समस्त कंदमूल जाति के पदार्थों के खाने का परहेज ही रखना चाहिये / किंतु सूत्र विपरीत अति प्ररूपणा करने के आग्रह में नहीं पहुँचकर विवेक से भाषण करना चाहिये। जिनधर्म, वीतराग मार्ग, त्याग का मार्ग है इसमें त्याग बढे तो लाभ ही है / त्यागने में नुकशान नहीं है किंतु सूत्र विपरीत मनमानी अति प्ररूपणा करना विशेष पाप है, ऐसा समझना चाहिये / इस अध्ययन के आठवें उद्देशक में वनस्पति के अनेक विभागों का अलग-अलग सूत्रों से कथन करके उनके अप्रासक अनेषणीय अवस्था में भिक्षु के लिये ग्रहण करने का निषेध है / जिनमें लहसुन एवं उनके विभागों तथा अर्क(रस) के लिये भी अप्रासुक अनेषणीय लेने का निषेध है / प्रतिपक्ष में लेने का विधान यहाँ किसी वनस्पति के लिये नहीं है / इस शास्त्र में ही आगे सातवें अध्ययन में प्रतिपक्ष विधान में लहसुन लेने का स्पष्ट कथन है / दशवैकालिक सूत्र के तीसरे अध्ययन में सचित्त कंदमूल लेने को अनाचार में गिनाया गया है, वहा भी प्रतिपक्ष रूप अचित्त का स्पष्टीकरण नहीं है।