________________ आगम निबंधमाला जैनदर्शनं के अनुसार यह सारे विकल्प युक्त कर्म बंधन का कथन.अज्ञानदशा के कारण है / संसार में एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के प्राणी हैं। सभी को कर्म बंध और संसार भ्रमण होता है। मन, वचन, काया तीनो के संयोग से और स्वतंत्र होने पर भी प्रत्येक योग और प्रत्येक कषाय से कर्म बंध होता है। कोई भी क्रिया के फल स्वरूप कर्मबंध नहीं हो, ऐसा नहीं होता है / तीव्र या मंद कर्मबंध अवश्य होता है / अज्ञान दशा से या अपने स्वार्थ से कोई पंचेन्द्रिय वध जानकर करे उसके परिणामो को विशुद्ध नहीं माना जा सकता / इसलिये पुत्र को मारकर खाने से भी कर्म बंध नहीं होता ऐसा कथन तो अज्ञान भरा ही है / बिलकुल असंगत है / इस प्रकार की मान्यता के कारण ऐसी मान्यता वालों को कर्म चिंता से रहित कहा है / छिद्रों वाली नावा को चलाने वाला अंधा हो तो उसमें रहे यात्री सुरक्षित दशा में जल को पार नहीं कर सकते / वैसे ही इन एकांतवादियों और अज्ञानियों की शरण में जाने वाले संसार पार नहीं कर सकते किंतु संसार में ही भ्रमण करते हैं / जगत कर्तृत्ववाद सिद्धांत :-चराचर पदार्थमय यह लोक किसने बनाया, कैसे बना आदि लोक की उत्पत्ति और उसका कर्ता किसी को मानना यह जगत कर्तृत्व वाद सिद्धांत है / इस विषय में शास्त्रकार ने अनेक मत बताये हैं। वे इस प्रकार हैं- (1) यह लोक देव द्वारा बना है (2) ब्रह्मा ने बनाया ह (3) ईश्वर ने बनाया है (4) प्रधान(प्रकृति आदि के) द्वारा कृत है / (5) स्वयंभू(विष्णु)ने बनाया (6) यमराज ने यह माया रची है / (7) अंडे से पृथ्वी उत्पन्न हुई है। उसमें तत्त्वों को ब्रह्मा ने बनाया है। अपने अपने आशय से विभिन्न प्रकार से ये अज्ञानीजन लोकं की उत्पत्ति मानते हैं किंतु वे यह नहीं समझते कि लोक शास्वत है / उसे किसी को बनाने की जरूरत ही नहीं है / वास्तव में लोकोत्पत्ति जानने की जरूरत नहीं है किंतु दु:खोत्पत्ति कैसे होती है यह जानना जरूरी है। अशुभ आचरणों से दु:ख उत्पन्न होता है / दुःख की उत्पत्ति का कारण जाने बिना दुःख को रोकने के उपाय रूप संवर को कैसे जान सकते हैं ? पापाचरण ही दु:खोत्पत्ति का हेतु है और उसका त्याग ही दुःख रोकने का उपाय है / लोक तो अनादि से है वह कभी नहीं था, ऐसा नहीं है / 83