________________ आगम निबंधमाला . अनेक दिन पुराने खाद्य पदार्थों में लीलन फूलन भी आ सकती है / यथा- आचार, मुरब्बे या मिठाई आदि में / ग्रहण करते समय संदेह नहीं होने से, भूल हो जाने से, ऐसे पदार्थ ग्रहण हो जाते हैं। लड्डु, बर्फी आदि के भीतर भी फूलण हो सकती है जो बाहर से स्वाभाविक सहज रूप से नहीं दिखती है / शक्कर आदि अचित्त सूखे पदार्थों के साथ जीरा आदि सचित्त बीज भी आ सकते हैं / खसखस के दाने, राई(सरसों) भी किसो पदार्थ में मिल जाने से आ सकते हैं / कई चीजों को अचित्त, शस्त्र परिणत समझकर ग्रहण करने में आ जाते है, फिर सचित्त अशस्त्र परिणत होने का मालुम पडता है / बिना उबाली हरी वनस्पति धनिया पत्ती वगैरह किसी खाद्य पदार्थ के साथ आ सकती है। यथा- खमण आदि पर डाली गई धनिया पत्ती वगैरह / इसी प्रकार ककडी, दूधी आदि बिना उबाली किसी प्रकार के राइते में या अलग से लेने में आ सकती है। कोई भी गीले खाद्यपदार्थ का रसस्वाद बिगड गया हो, खट्टा या मीठा विकृत स्वाद बन गया हो तो उसमें रसज जीव उत्पन्न हो जाते हैं / मिठाई या अन्य खाद्य रोटी आदि में भी स्वाद या गंध बिगड जाने पर या दही दूध भी खराब हो जाने पर रसज जीव हो जाते हैं। ऐसे पदार्थ भी भूल से लेने में आ जाते हैं / इस प्रकार त्रस जीव, बीज, फूलन, हरित आदि से युक्त आहार सचित्त या सचित्त संयुक्त ग्रहण करने में आ सकते हैं / विवेक :- त्रस जीव का और सूखे पदार्थ में बीज का निकलना, शुद्ध हो जाना संभव हो तो निकाल कर अचित्त खाद्यपदार्थ का उपयोग किया सकता है / फूलन और रसज जीव वाले पदार्थ तो अखाद्य अपथ्य अर्थात् विकृत होने से परठने योग्य होते हैं / हरित वनस्पति के टुकडे या पत्ते कभी निकाले जा सकते हैं तब अलग करके शेष आहार का उपयोग किया जा सकता है। अचित्त पानी में कभी त्रस जीव हो सकते हैं, उन्हें छान कर शोधन करके पानी अचित्त हो तो उपयोग किया जा सकता है। उन छाने हुए त्रस जीवों को विवेक स जलीय स्थानों मे परठ दिया जा सकता है।