________________ आगम निबंधमाला संत भी इस उलझन का हल नहीं निकाल सकते हैं / ऐसी आगम की समस्त उलझनों का मूल यह है कि शास्त्र लेखन के समय जो भी संशोधन संपादन का अधिकार लेकर काम किया गया था, उसका विवरण पत्र इतिहास के रूप में अलग संकलित नहीं किया अथवा किया होगा तो वह भी एक दो प्रति होने से विलीन हो गया होगा। इसका ज्वलंत उदाहरण प्रश्रव्याकरण सूत्र है / उसमें आज जो विषय है, वह पूर्णरूपेण अन्य है / नंदी सूत्रमें कहा गया विषय कुछ और ही है / ठाणांग, समवायांग सूत्र में भी प्रश्नव्याकरण का विषय वर्णन कहा गया है किंतु इन सभी में से किसी में एकरूपता नहीं है / जो आज प्रश्नव्याकरण का विषय है, वह इन तीन सूत्रों में किंचित् संकेत रूप भी नहीं है / ऐसे अंग सूत्र को पूरा ही परिवर्तित कर देने पर भी उसका . कोई लिखित इतिहास उन आचार्यों ने सुरक्षित नहीं किया है, यही उलझनो का मूल है। अतः ऐसा समझ कर बडी बडी उलझनो को शास्त्र लेखन काल के समय पर किये गये सर्व सम्मत संपादन के ऊपर छोड देने से योग्य समाधान हो सकता है.। सार- स्त्री परीषह का मोहोत्पादक वर्णन और विद्याओं का संकेत प्रमुख वर्णन होने से लेखनकाल में इस अध्ययन का विच्छेद कर दिया गया था किंतु समवायांग में से नाम नहीं हटाया। जिस प्रकार कि प्रश्नव्याकरण नया कर दिया तो भी उसका नंदी, ठाणांग, समवायांग में परिचय विषय, जैसा था वैसा ही रहने दिया। यह भी एक छाद्मस्थिक दोष था / जिससे आज के तार्किक जिज्ञासुओं को उलझनों का सामना करना पडता है और विविध सत्यासत्य कल्पनाएँ करनी पडती है / विभिन्न अध्ययन मनन और अनुभव के आधार से उक्त निचोड दिया गया है / संभव है इससे तार्किक जिज्ञासु साधकों का कुछ समाधान हो सकेगा। निबंध-२० विशिष्ट साधना और व्यवहार इस अध्ययन के पाँचवें उद्देशक में एक विशिष्ट नियम अभिग्रह 42