Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 7
________________ अतएव विनय का विस्तार से वर्णन इसमें किया गया है। अन्त में सव का सार देकर सच्चा भिक्षु कैसा हो यह संक्षेप में वर्णित है । ___ इस सूत्र में दो चूलिका भी जोड़ी गई हैं । उनका उद्देश्य भिक्षु को अपने संयमी जीवन में दृढ़ रहने का उपदेश देना-यह है । अर्थात् इसमें गृहस्थ जीवन की हीनता और संयमी जीवन की उच्चता का प्रतिपादन अनिवार्य हो गया है । इस प्रकार संयमी जीवन के अनेक प्रश्नों को लेकर इस ग्रन्थ में निरूपण होने से इसी सूत्र से नये भिक्षु का पठनक्रम शुरू होता है । इसे भिक्षु जीवन की प्रथम पाठ्य पुस्तक कहा जाय तो अनुचित नहीं होगा।" प्राकृत भारती का प्रारम्भ से ही यह उद्देश्य रहा है कि प्राकृत भापा में सन्हब्ध विशाल पागम साहित्य का स्वरूप, सारांश सर्व साधारण समझ सके। इसी दृष्टि से अकादमी डा. कमलचन्द जी सोगाणी, प्रोफेसर दर्शन विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से चयनिकायें तैयार करवाकर प्रकाशित कर रही है । इस शृंखला में अभी तक डा. सोगाणी द्वारा चयनित-"आचारांग-चयनिका, समणसुत्तं चयनिका, वाक्पतिराज की लोकानुभूति"-प्रकाशित कर चुकी है । दशवकालिक चयनिका प्रस्तुत है और उत्तराध्ययन एवं सूत्रकृतांग की चयनिकायें शीघ्र ही प्रकाशित होंगी। हमें हार्दिक प्रसन्नता है कि हमारे इस प्रयत्न से प्रबुद्ध पाठकों में आगमों के अध्ययन के प्रति रुचि जागृत हुई। उन्होंने इसको सराहा, सहर्ष स्वीकार किया और चयनिकाओं का अध्ययन किया । इसी के फलस्वरूप अल्प समय में ही आचारांग-चयनिका का द्वितीय संस्करण भी अकादमी को प्रकाशित करना पड़ा। दशवकालिक ] [vii

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