Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 10
________________ දි अर्थ --- कायोत्सर्ग ( ध्यान ) के करनेसे हे भगवन् ! जीवको क्या फल होता है ? हे गौतम ! कायोत्सर्गके करनेसे भूतकाल और वर्तमान कालके अतिचारोंकी शुद्धि होती है, फिर अतिचारोंकी शुद्धि होनेपर जीव स्वस्थ चित्तवाला हो जाता है, जैसेकि - भारवाहक भारको उतारकर स्वस्थ चित्त हो जाता है, अतः फिर वह सुदर ध्यानयुक्त होकर सुखपूर्वक विचरता है ॥ अथ प्रत्याख्यान आवश्यक विषय ॥ पञ्चक्खाणं भंते जीवे किं जणयइ पञ्चक्खाणेणं आसव दाराई निरुभइ पञ्चक्खाणेणं इच्छानि रोहं जणयइ इच्छानि रोहंग एयणं जीवे सब दव्वेसु विणीय तण्डे सीयलभूए विहरइ ॥ उ०सू०अ०२९ सू०१३॥ अर्थ - प्रत्याख्यान करनेसे हे भगवन् ! जीवको क्या लाभ होता है ? हे गौतम ! प्रत्याख्यान करनेसे जीव आस्रवके मार्गोको ढाप देता है और इच्छाका निरोध कर देता है । फिर जब इच्छाका निरोध हो गया तत्र सर्व द्रव्योंसे उस जीवकी निवृत्ति हो जानी है अपितु निवृत्ति होनेपर फिर वह जीव शान्तिरूप होकर विचरता है | • सो यह पट् आवश्यक अवश्य करणीय है क्योकि इनके करनेसे आत्मा अपने निज स्वभावमे प्रवेश करने लग जाता है । पुनः श्री अनुयोग द्वारजी सूत्रमें आवश्यक सूत्रके चार निक्षेप किए है जैसेकि - नामावश्यक १ $ योगाभ्यास भी इसका एक अंश है || सूत्रकर्ताने सर्व जीवोंको सुगम रूप उदाहरणोंसे प्रतिबोधित किया जैसेकि हम स्थानपर भारवाहकका उदाहरण || + जो प्रतिक्रमणमें टघुत्रत गुर्जर भाषामें लिखे गये हैं वे इस देशके प्रथम है किन्तु जो बड़े व्रत के अतिचार है उनसे भी ध्यान किया जा सक्ता है ||

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