Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 78
________________ ८० . . सहाणुवाइ, रूवाणुवाइ, वहिया पुग्गल पक्खेवे जो मे देवलि अइयारो कर तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ हिंदी पदार्थ-(दशमुं) दशवां (देसावगासिक व्रत) देशावकोशिक व्रत जिसका अर्थ है कि जो प्रथम व्रतोंमें बहुतसे पदार्थ अतीव वि. स्तारपूर्वक रक्खे हुए है उनको दिन प्रतिदिन सक्षिप्त करते रहना उसीका नाम देशावकाशिक व्रत है जैसेकि-(दिन प्रते प्रभात थकी प्रारंभीने पूर्वादिक छ दिशे जेटली भूमिका मोकली राखी छे) दिन प्रति प्रातःकालसे आरंभ करके पूर्वादि षट् दिशाओंमें यावत् परिमाण गमन करना रक्खा हुआ है (ते उपरान्न) उसके विना (सइच्छायें) स्व इच्छा करके वा (कायायें) काय करके (नइने) जाकर (पांच आस्रव सेववाना पञ्चक्खाण) पांच आस्रव [हिंसा, असत्य, चौर्य कर्म, मैथुन, परिग्रह, इनके ] आसेवन करनेका प्रत्याख्यान (जाव) यावत (अहोरत्तं) दिन और रात्रि पर्यन्त (दुविह) द्विकरण और (निविहेणं) तीन योगोंसे जैसेकि-(न करेमि) स्वयं आसेवन न करूं (न कारवेमि) अन्य आत्माओंसे आसेवन न कराऊं (मणसा) मन करके । (वयसा) वचन करके (कायसा) काया करके (तथा जेटली भूमिका मोकली सखी छे) तथा यावत् भूमिका परिमाण युक्त है (ते माहीज जे द्रव्यादिकनी मर्यादा कीधी छे) उसमें जो द्रव्यादिका परिमाण किया हुआ है (ते भोगवी) वही ग्रहण करने (ते उपरान्त) उनके विना (उवभोग) जो एक वार आसेवन करनेमें आवे वा (परिभोग) वारम्बार ग्रहण करनेमें आवे ( भोग निमित्ते) भोगनेके वास्ते (भोगववाना) भोगनेका आसेवन करनेका (पञ्चक्खाण) प्रत्याख्यान (जाव) यावत् (अहोरत्तं ) दिन रात्रि पर्यन्त ( एगविहं ) एक करण और (तिविहेणं) तीन योगोंसे जैसे कि(न करेमि । न करूं (मणसा) मन करके (वयसा) वचन करके (कायसा), काय करके (एहवा) ऐसे (दशमा देशावकाशिक व्रतना) दशवे देशावकाशिक व्रतके (पंच) पांच ( अइयारा) अतिचार (जाणियन्वा) जानने

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