Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 91
________________ ९५ अरिहंत है अर्थात् जो अतरग विभूति वा वाह्य विभूतिसे विभूषित हैं उनको भी वदना नमस्कार करता हू, किन्तु (सहस युगल कोड़ी नमु ) दो सहस्र प्रमाण जो जघन्य पढ़वाले ( साधु वंदु निसदीस) साधु हैं उनको भी अहोरात्र वदना नमस्कार करता हू || भावार्थ - अरिहंत सिद्ध भगवतोको वदना नमस्कार करे, फिर सर्व केवली सर्व स्थविर पदधारी मुनियों को भी वंदना नमस्कार करे, तदनतर जो स्तोकसे स्तोक दो क्रोड़ केवली तथा वीस अरिहंत और दो सहस्र मुनि होते है, उनको भी वंदना नमस्कार करे | पुनः जो ८४ लक्ष प्रमाण जीवोंकी योनिया है, उन सनोंसे निम्नलिखितानुसार क्षमावणा करे सप्त लक्ष पृथ्वी काया, सप्त लक्ष अप काया, सप्त लक्ष तेजु काया, सप्त लक्ष वायु काया, दश लक्ष प्रत्येक वनस्पती काया, चतुर्दश लक्ष साधारण वनस्पती काया, दो लक्ष केंद्रिय, दो लक्ष त्रिइंद्रिय, दो लक्ष चरिंद्रिय, चतुर्लक्ष देव, चतुर्लक्ष नारकी, चतुर्लक्ष तिर्यंच पंचेंद्रिय, चतुर्दश लक्ष मनुष्य, एवं चौरासी लक्ष जोवा योनिमेंसे यदि मैंने कोई जीव हनन किया हो तथा अन्यको मारनेका उपदेश दिया हो, वा हनन कर्ताओं की अनुमोदना की हो, वे सर्व मन वचन काया करके १८२४१२० प्रकारे तस्स मिच्छामि दुक्कडं | * जीवतस्त्र के ५६३ भेदोंको अभियादि दशोंके साथ गुणाकार करनेसे ५६३० भेद होते हैं। फिर इनको राग और द्वेषके साथ द्विगुणाकार करने से ११२६० भेद बनते है । फिर इन्होंको मन वचन और कायाके साथ '

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