Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 97
________________ १०२ किन्तु पानी प्राशुक ही आसेवन करे । आगार सर्व प्राग्वत् ही हैं, इसमें विशेष विगयोंका ही प्रत्याख्यान है किन्तु वर्तमान कालमें तक्रके साथ इस नियमको पाला जाता है। स्कंधविगय, धारविगयके प्रत्याख्यानका विवेक होना चाहिये। अथ एकासन द्विआसन करनेका पाठ ।। उग्गयसूरे एगासणं बियालणं पञ्चक्खामि दु. विहं तिविहंपि आहारं असणं खाइमं साइमं अन्नस्थणा भोगणं सहसागारेणं' आउदृण पसारेणं गुरु अभ्भुठाणेणं सव्व समाहिवत्ति आगारेणं वोसिरामि॥ हिंदी पदार्थ (उग्गयसूरे) सूर्य उदयसे (एगासणं) एकासन वा (बियासणं) दो आसन, एक वार भोजन करनेको एकासन और द्विवार भोजन करनेको दो आसन कहते है, उनके उपरान्त (पञ्चक्खामि) प्रत्याख्यान करता हूं । ( दुविहं ) यदि पानी और स्वादिम ग्रहण करने होवें तो अशन और खादिमका प्रत्याख्यान करे, यदि एकासनके पीछे केवल प्राशुक पानी ही ग्रहण करना होवे तो (तिविहंपि) तीन प्रकारके आहारका प्रत्याख्यान करे जैसेकि-(असण) अन्नकी जाति (खाइम) खादिमकी जाति (साइमं ) स्वादिमकी जाति, किन्तु निम्नलिखित आगारानुकूल जैसेकि(अन्नत्यणा भोगेणं) विना उपयोग (सहस्सागारण) अकस्मात् (आउट्टण पसारेणं) शरीरके संकोचन [सुकेड़ने] और पसारनेपर क्योंकि यदि एकासनमें अंगोपांग संकोचन और पसारन किये जाए तो प्रत्याख्यान भंग न होगा (गुरु अम्भुटाण) गुरुके आनेपर यदि विनयके वास्ते उठना पड़े (सत्र समाहिवत्ति आगारेणं) सर्व प्रकारकी समाधिके रहने पर (वोसिरामि) उक्त आगारोंयुक्त तीन आहारको छोडता हूं ॥ १ सागारियागरेण । २ पग्लिावणियागारेणं, महत्तगगारेण ॥

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